नयन का घूँघट हटा कर ,
ह्रदय का द्वार खोल कर ,
बैठी हूँ , तेरे इन्तजार में ,
बेताब ज़िगर लेकर ।
सुबह से शाम ढल गई , मधुमास की ,
ये मेहँदी सूख गई है , गोरे हाथ की ,
बयारों में महक छाने लगी है ,
आम्र बौरों की ।
यह महकती रात प्यासी है ,
ये मेरे नयन प्यासे हैं ,
ये प्यासें तृप्त तुम कर दो ,
मेरी , सूनी बाहों को भर कर ।