Tuesday, February 13, 2018

पहाड़ की लड़की

पहाड़ की लड़की ,
होती है
एक सम्पूर्ण कविता ,
इसमें निहित है ,
छंद - ताल ,
लय और सुर ,
गीत और संगीत  ......

जब कभी ,
किसी पहाड़ी सोते से ,
भर कर पानी
ताँबे की गगरी में ,
और फिर
रख कर कमर पर ,
चलती है लड़की
पहाड की ऊँची - नीची ,
चढ़ती - उतरती
पगडंडियों पर ,
मन्दाकिनी की
धार सी पवित्र ,
चंचल  - छल - छल करती ,
अपनी धुन में चलती ,
सारा वातावरण
झंकृत हो उठता है ,
बज उठता है संगीत ,
फूट पड़ते हैं झरने ,
खिल उठता है बुरांस ,
बुरांस का फूल है लड़की ,
अनुपम , अद्भुत ,अद्वीतीय ,
अप्रतिम सौंदर्य लिए
प्रकृति का वरदान ,
ईश की सृष्टि
होती है लड़की ,
रचती है पूरा संसार ,
धरा और आकाश ,
पर्वत , सागर और नदियाँ ,
करती है जीवन का विकास,
चाहती है सम्मान ,
अन्यथा  ,
विनाश ही विनाश   .........

( नोट  : - प्रकाशित  )

आओ आज गले हम मिल लें

आओ आज गले हम मिल लें ,
कुछ तुम रो लो , कुछ हम रो लें ,
आँखों से आँसू छलका लें  ,
दिल के जख्मों को सहला लें ।

मौसम का है आना जाना ,
जीवन का भी आना जाना ,
भूली बिसरी यादों को हम ,
मिल बैठ कर फिर महका  लें।

कभी पतझड़ है , कभी वसंत है ,
जीवन भी तो इक वसंत है ,
इस वसंत को जी भर जी लें ,
तुम्हे हँसा लें , खुद भी हँस लें।

मानो तो मदिरा है जीवन ,
न मानो तो एक गरल है ,
मदिरा और गरल हम पी लें ,
आओ इस क्षण को हम जी लें।
आओ आज गले हम   .........

Monday, February 12, 2018

गीत ( गव्य )

आ जा खुली हैं कब से ये बाहें ,
दिल मेरा तुझको पुकारे।    

कितना हँसी आज का है ये मौसम ,
मौसम करे क्या इशारे ,
हर ओर कलियों की है मुस्कराहट ,
हँसती हुई ये बहारें।
आ जा   .........

हवाओं की बाहों पर बादल घनेरे ,
बरसाए रिमझिम फुहारें ,
कलियों की अधरों पर भँवरों की नजरें ,
मस्ती भरे ये नज़ारे।
आ जा  .......

सतरंगी किरणों ने धनुषी छटाएँ
अँगना गगन के पसारे ,
तुम हो कहाँ आ भी जाओ ओ साजन ,
पलकों ने पथ हैं बुहारें।
आ जा  ......

Sunday, February 4, 2018

" आग "

रोटी पकाने के लिए ,
आग की जरूरत होती है ,
रोटी ,  वह चाहे पेट के लिए हो
या , राजनीतिक लिप्सा के लिए ,
या फिर ,
कुर्सी के लिए ही।

आग जलाने के लिए ,
समिधा की जरूरत होती है ,
समिधा चाहे  " धर्म " की हो
अथवा , " जाति  " की हो ,
या फिर ,
" आरक्षण " की ही
आग तो आग है ,
वह कभी फर्क नहीं करती ,
" अमीर " और " गरीब " की ,
" बच्चे " और " बूढ़े " की ,
" मर्द " और " औरत " की ,
" अभिजात " और  " अनअभिजात " की ,
कोई भी जले ,
" युवा " जलें तो जलें ,
" प्रतिभा " जलती है तो जले ,
" देश " जलता है तो जले ,
रोटी अपनी सिंकनी चाहिए  ।

कब छुटकारा पायेंगे हम
इस ओछी मानसिकता से  ?
यह देश हमारा है ,
ये युवा हमारे हैं ,
ये  " बच्चे " ये  " बूढ़े "
ये हमारी  " बहनें " और  " माएं "
हमारी ताकत  हैं  ,
हमारी धरोहर हैं।
क्या हम इतने कमजोर हैं
कि ,
अपनी अमानत की ,
स्वयं , रक्षा  नहीं कर सकते  ?
या फिर , हम अविवेकी हैं  ?
हमारी कमजोरियों और अविवेकीपन को
भाँप कर ही ,
शत्रु बलवान होते हैं  ।
तो , आओ ,
हम अपने सीने में आग  जलायें  ,
और ,
अपने अन्दर और बाहर के
शत्रुओं का नाश करें ,
अपने मन की  " सरहदों "को
अपने  देश की "  सरहदों  "  को
सुरक्षित करें ,
और ,
गर्व से  कहें  -
हम महान हैं ,
यह हमारा देश महान है ,
यह  " भारत " है , 
यह हमारा भारत है। 
 
ब्लॉग तिथि - 04 - 02 - 2018


( नोट : - प्रकाशित )