रात भर जलती रहीं
मोमबत्तियाँ ,
गर्म आँसुओं से भींगता
उसका बदन
धीरे - धीरे पिघलने लगा ।
धीरे - धीरे रात बीतने लगी ,
रात के साथ - साथ
धीरे - धीरे ,
मोमबत्तियों का बदन
पिघल , पिघल कर
गलता रहा ,
गलता रहा ,
गलता रहा .........................
मैं भी जलती रही ,
तपन , थकन , टूटन
और उससे भी अधिक
अपने ह्रदय की उस टीस से
जो , मैंने अपनों से ही पाया ,
एक रात के स्याह अन्धकार में ,
उस अपने ने
चोरी से , छल से , बल से ,
मेरा सब कुछ
लूट लिया ,
मैं जलती रही
रात और दिन ,
और ,
मेरा बदन ,
मोमबत्ती की तरह ही
गलता रहा ,
गलता रहा ,
गलता रहा .......................
---- ( प्रकाशित )