Tuesday, October 22, 2019

एक तू ही है अनश्वर

मन समर्पित , तन समर्पित ,
प्राण भी तुझ को समर्पित ,
जीव क्या , निर्जीव क्या ,
हैं सभी तुझ में समर्पित ,
जान कर भी भूले हम सब ,
चल - अचल सब ही हैं  नश्वर ,
एक तू ही  है  अनश्वर ,
एक तू ही  है अनश्वर।

Saturday, October 19, 2019

पेड़ और पत्ते

एक दिन
पेड़ और पेड़ के पत्तों में बहस छिड़ गई ,
पेड़ ने कहा
मुझ से तू है ,
तुझसे  मैं नहीं ,
मैं तुम्हें सींचता हूँ ,
तुम्हें जिलाता हूँ।
पत्तों ने कहा
यह सच है
पर यह भी सच है
पत्तों के बिना
पेड़ की क्या विसात है।
हम पत्ते हैं ,तो  ,
तुम्हारी पहचान है ,
हम नहीं रहेंगे  , तो ,
तुम्हारी  क्या पहचान है ?
पेड़ को बड़ा गुस्सा आया ,
बोला कुछ नहीं , पर
पत्तों को सबक सिखाने की
जुगत में लगा रहा।
फिर क्या था ,
पेड़ को एक दिन मौक़ा मिल गया ,
उसने अपने साथी
बादल  और हवा को बुला लिया ,
वह जोर , जोर से झूमने लगा ,
तेज आँधियां चलने लगी ,
तेज बारिस हुई ,खूब ओले पड़े ,
इतने तेज कि पेड़ के
सारे पत्ते  झड़ गये ,
यहाँ तक कि  पेड़ की जड़ से
मिट्टी भी काट - काट कर
बहा ले गई।
पेड़ से गिरे पत्ते
चुप - चाप आँसू बहाते रहे।
पेड़ ने अट्टहास किया -
अब सड़ो जमीन  पर पड़े - पड़े ,
पत्तों ने कुछ नहीं कहा।
दूसरे दिन धूप  निकल आई ,
पत्तों ने सूरज से विनती किया -
प्रभु , तुम में जो शक्ति है
मुझ में भी भर दो ,
मैं भी लोगों के ताप हर सकूँ।
सूरज कुछ नहीं बोला ,
बस दिन भर पत्तों संग खेलता रहा।
दूसरे दिन सूरज फिर निकला ,
सूरज की किरणों के साथ -साथ
कुछ गरीब  लोग
पत्तों के पास आ गये ,                              
कल्ह जो पत्ते भींगे थे , गीले थे
आज सूख गए थे ,
उन गरीब लोगों ने उन पत्तों को
एक जगह इकट्ठा कर
बोरियों में भर लिया ,
फिर अपने कन्धों पर लाद
अपने घर ले गये।
बिना पत्तों के वह ठूंठनसा पेड़
अकेला खड़ा रह गया।  
फिर आ गया ढंढ का मौसम ,
उन गरीब लोगों ने
जो पत्तों को बटोर कर ले गए थे
बोरियों से पत्ते निकाल कर
जलाने लगे ,
पत्ते ख़ुशी - ख़ुशी जलने लगे ,
उसको चारों ओर से
लोग घेर कर खड़े थे ,और
ठंढ से अपना बचाव कर रहे थे।
पत्तों ने सूरज को याद किया  -
तुमने मुझमें अपनी शक्ति दी ,
मैं भी इन भोले
गरीबों के काम आ सका ,
यही मेरा बड़ा सौभाग्य है।
इधर ,
एक दिन फिर तेज हवा चली ,
तेज हवाओं के झकोरे
पेड़ सह नहीं सका ,
उसकी जड़ें तो पहले ही
खोखली हो गईं थीं ,
वह पेड़ धराशयी हो गया।
दूसरे दिन लोगों ने देखा ,
कोई कुल्हाड़ी ले कर आया ,
कोई  आरी लेकर आया ,
फिर क्या था -
देखते - देखते
किसी ने  आरी से उसके पेट चीर दिये ,
किसी ने कुल्हाड़ी से उसके सिर ,
किसी ने उसके हाथ ,
किसी ने उसके पैर  काटे ,
जानो , उसके शरीर के
टुकड़े - टुकड़े कर दिये ,
फिर , ट्रकों में भर कर ,
अपने गोदाम ले गए ,
वहाँ उन्हें जमीन पर
बेरहमी से पटक दिया।
पेड़ के टुकड़े वहीँ जमीन पर
पड़े - पड़े , कुछ सड़ गए ,
कुछ में कीड़े लग गए
कुछ को बार - बार
आरी से  चीरा गया ,
कुल्हाड़ी से काटा गया ,
अब पेड़ के कटे टुकड़ों को
पत्तों की याद आने लगी ,
पर अब न तो वह पेड़ था
ना पत्ते थे ,
सब कुछ ख़त्म हो गया  था ,
पर कटते - कटते
पेड़ के  टुकड़ों ने सोचा -
काश हम दर्प ना करते ,
अपने अहंकार  में
पत्तों के महत्व को नहीं समझ सके ,
ना उन्हें गिराते ,
ना खुद  मिटते  , ना पत्ते ,
हम सब हरे - भरे ही रहते ,
सदियों -सदियों तक ,
सदियों -सदियों तक   ........

Thursday, October 17, 2019

ग़म  तो है दुनियाँ में बहुत , लेकिन
कभी मुस्कुरा कर भी देखिये ,
काँटों  की हथेली पर खिलता है  गुलाब ,
उससे मुस्कुराना सीखिए।

Friday, October 11, 2019

बिल्ली , चूहा और घंटी

सुना है शहर में एक बड़ा जादूगर आया है ,
बड़े - बड़े जादू दिखलाता  है। 
जब वह अपना हाथ हिलाता है
साँप  को रस्सी और रस्सी को साँप  बना देता है।
 उसका जादू देखने को भीड़ लगी रहती है ,
उसकी आवाज दूर - दूर तक सुनाई देती है।
एक दिन उसी भीड़ में एक चूहा भी खड़ा था ,
उसके  एक हाथ में एक घंटी पड़ा था।
चूहा दरअसल बिल्ली के गले में
घंटी बांधने जा रहा था ,
पर भीड़ देख कर  वह भी
जादूगर का जादू देखने रुक गया था ।
जादूगर ने कहा -
अपने हाथ की सफाई दिखाता हूँ ,
तुम सब देखो
कैसे शेर को बिल्ली बनाता हूँ।
इतना कह जादूगर शेर की तरह गुर्राया ,
चूहे की समझ में कुछ भी ना आया ,
पर अगले ही पल उसने शेर को
बिल्ली बना पिंजरे में बंद पाया।
जो पहले शेर था  ,
अब बिल्ली बना पिंजरे में बंद है ,
लोग कहते हैं
जादूगर बहुत अक्लमंद है।
चूहे ने मन में सोचा - जादू तो जादू है ,
कब किसका जादू चल जाए ,
आज जो शेर पिंजरे में बंद है ,
कल्ह बाहर आ जाए ,और
आज जो जादूगर, बाहर है ,
कल्ह पिंजरे के अन्दर हो जाए।
इतना सोचते ही उसे
बिल्ली का ध्यान आया ,
घंटी वहीँ भूल  सिर पर पैर रख कर
रफूचक्कर हो गया।
बिल्ली , चूहे और घंटी की कहानी
तब से वहीँ  खड़ी है ,
 जादूगर अब भी है , पर
जादू उसके जेब में पड़ी है।

Wednesday, September 18, 2019

तुम फिर आ गए बापू !

लो ,तुम फिर आ गए बापू !
अरे !  सुना है , 
तुम्हारी तो किसी ने ह्त्या कर दी थी ,
नहीं , नहीं , तुम मर भी कैसे सकते हो ,
हर वर्ष आते हो ,
आते हो क्या !
हमारे साथ ही रहते हो ,
इसी देश में ,
कभी रुपयों वाली नोट में  दीखते हो ,
कभी सिक्कों में ,
कभी लोगों की चर्चाओं में  ;
हाँ , तुम्हारे मारने की हर दिन
कोशिश होती है ,
पर तुम नहीं मरते ,
पता नहीं क्यों ,
लोग अन्दर ही अन्दर कुढ़ते हैं ,
पर तुम्हे मारें
इस बात से उन्हें भी डर लगता है ,
और तुम ,
अपने  उसी पुराने चिर मुद्रा में ,
हाथ में सोटा , कमर में लकोटि ,
आँख पर वही मोटा चश्मा पहने ,
इधर से उधर फिरते रहते हो।

अच्छा हुआ तुम आ गए ,
लो खुद ही देख लो अपना देश ,
लोग बड़े खुश हैं , अमन - चैन से हैं ,
लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं ,
कहाँ , लकड़ी और उपले
जला-जला कर खाना बनाते थे ,
उससे उठते धुएँ से
अपना आँख फोड़ लेते थे   ,
 अब गैस सिलिन्डर आ गया है ,
न लकड़ी गीली होने का डर ,
न उपले  के भींगने का डर ,
माचिस से भी छुटकारा ,
झट  लाइटर दबाओ ,
चट  गैस जलाओ ,
फटा - फट खाना  बनाओ।
अलबत्ता , गैस सिलिन्डर
इतना मँहगा होता जा रहा है , कि
लोगों के पाकिट को फाड़ कर
बाहर आ रहा है।

बैलगाड़ी और तांगे का तो जैसे
नामोनिशान ही मिट गया लगता है ,
घोड़ा तो अब पुलिस वालों के
घुड़साल में ही दीखते है ,
अब लोग , कार और स्कूटर पर
शान से चलते हैं ,
हाँ , पेट्रोल की कीमतों में
लगी आग से
उनके पैंट की जेब जरूर झुलस जाती है ,
पर सुख - सुविधा के लिए
यह सब तो सहना ही पड़ता  है।
सड़कें बहुत खूबसूरत हैं ,
दमदार , गढ्ढ़ेदार , हिचकोलेदार ,
कुछ लोग ठीक ही कहते हैं
सड़कों में जगह - जगह
गढ्ढे तो होने ही चाहिए ,
लोग देख-भाल कर
संभल - संभल कर सड़क पर चलेंगे ,
ना हों गढ्ढे तो सरपट भागेंगे ,
फिर फिसलेंगे , चोट खायेंगे ,
या फिर ,कौन जाने आगे क्या हो !
कार और स्कूटर भगाने वालों के लिये
सरकार ने  सशर्त नियमों सहित
कुछ कागजात साथमें रखना
अनिवार्य कर दिया है  ,
बिना उन कागजों  और शर्तों के
कार और स्कूटर
सरपट भागने वालों के लिये ,
सरकार ने अच्छा इंतजाम कर रक्खा है ,
कदम - कदम पर सरकारी अमला
इनका जम कर स्वागत कर रही है ,
लोग ख़ुशी - ख़ुशी ,
अपने स्वागत के लिये
हजार , दो हजार की कौन कहे
लाखों न्योछावर कर रहे हैं ,
भले , घर में उनके फाँका पड़  जाये ,
सरकार भी खुश , जनता भी खुश।
इस ख़ुशी की बात पर एक बात याद आई ,
तुम तो जीवन भर लड़ते ही रहे ,
कभी देश के लिये अंग्रेजों से लड़े ,
कभी गरीबों और किसानों के
हक़ के लिये लड़े  ,
किसानों की बात पर भी
एक बात याद आई -
सुना है कि विगत कुछ सालों में ,अभाव में
बहुत से किसानों ने आत्म -ह्त्या कर ली ,
कहीं ,कहीं तो किसान कई - कई
दिनों तक पानी में खड़े रहे ,
अरे भाई , पानी में खड़े रहो  , या
आत्म - ह्त्या ही करो ,
किसी का क्या बिगड़ता है ,
किसान कोई नेता थोड़े ही है , कि
हाय - हल्ला मचे ,
तुम होते तो शायद
अब भी किसानों के लिये लड़ते,
पर आज देखो ,
सब अपने -अपने लिये लड़ रहे हैं ,
देश जाए  ....................
पहले पेट पूजा ,
फिर काम दूजा।

धर्म -कर्म भी बहुत बढ़ गया है ,
तुम तो राम - राम रटते ही रह गये ,
आज देखो हर ओर
राम की जय -जयकार हो रही है ,
हर गली - मुहल्लों में
राम के नाम का पताका
लहराते लोग मिल जाते हैं ,
ये दीगर बात है  , कि
कभी - कभी  राह में
दुष्ट लोग  टकरा  जाते हैं , फिर क्या ,
हाथ के हाथ दण्ड का प्राबधान है ,
पीटते - पीटते  सीधा
स्वर्ग - लोक पहुँचा देते हैं ,
कोर्ट -कचहरी की
जरूरत ही नहीं पड़ती ,
वो कहते हैं ना , कि ,
क़ानून तो हम ही बनाते हैं ,
देश हमारा है , क़ानून हमारा है ,
न्यायपालिका हमारी है ,
मज़ाल है , लोग चूँ  तक करें !
उफ़ तक नहीं करते ,
झट उन्हें देश से
बाहर का रास्ता दिखाने
कई हमदर्द खड़े रहते हैं।
वैसे आज के सभी जन , देश -भक्त हैं ,
कोई किसी से कम नहीं ,
अगर कोई नहीं है , तो
वह है  ' जनता ' ,
क्योकि , वह सच बोलने के लिये
जरा -जरा मुँह खोलती है ,
उसका जरा सा मुँह खोलना ही
साबित करता है , कि ,
वह देश - भक्त नहीं  है।
आपका पुराना ज़माना थोड़े ही है ,
अंग्रेजी सत्ता भी
आपके  ' सच ' से काँप जाती थी !
चलो , आप आ ही गए हो , तो ,
खुद ही देख लो
20  वीं  सदी का अपना देश ,
किसी के बताने  या कहने की
जरूरत तो नहीं है।
सो हे बापू !
तुम्हारे आज के आगमन पर
हम सब छोटे - बड़े , लम्बे -ठिगने ,
गरीब - अमीर , ऊँच -नीच ,
लँगड़े -लूले , काने - कुतरे ,
गूँगे -बहरे , दोस्त - दुश्मन ,
मजदूर - अफसर ,सरकार -पत्रकार ,
स्वस्थ्य -बीमार , साहूकार -चाटूकार ,
 हम सभी आपको नमन करते हैं ...........
 
( प्रकाशित -  2019 )






Monday, August 5, 2019

नए दरख़्त उग आये हैं

बूढ़े  दरख़्तों  से कहो ,
वे  ख़ुद छोड़ दें वह जगह ,
नए दरख़्त उग आये हैं
नए अंदाज़ में ,
अब उनकी ज़रुरत  नहीं है  ......

बरगद से कहो ,
वे इतराना छोड़ दें ,
पंछियों  को देते हैं बसेरा
और ,
करते हैं छाया ,
थके मुसाफिरों पर  .....

पीपल से कहो,
मुस्कुराना छोड़ दें  ,
हम ही हैं 
देते हैं शुद्ध हवा
ऑक्सीजन ,  जीने के लिए ,
अब नया ज़माना आया है ,
नयी तकनीक आ गई है ,
सब कुछ हम स्वयं कर लेंगे ,
अब उनकी  कोई ज़रूरत  नहीं है। ......

Saturday, July 27, 2019

मुक्तक

मछली ने केंचुए से कहा -
तू क्यों मुझे ललचाती है ,
खुद तो मरती ही  है ,
मुझे भी मरवाती है।

कभी पानी का थाह
बाँस लेता है ,
कभी पानी   बाँस को
बहा ले जाता है।

बरसाती नाला , बहुतों को
बहा ले जाती है ,
कुछ उसके साथ बह जाते हैं ,
कुछ अपने को बचा लेते हैं।

मनुष्य को देख परिंदे ने कहा ,
कितना स्वार्थी हैं ये ,
अपना घर बनाने के लिये ,
परिंदों का घर उजाड़ देते हैं।
--- मंजु  सिन्हा

Wednesday, July 24, 2019

निठुर भोर !

जाने कितनी रात कटी मेरी आँखों में ,
कुछ  आश लिये ,
अरे ! निठुर " ओ  भोर  " ,
तुझको इसकी खबर नहीं है  .......

जाने कितनी बात रही अनकही ,
तैरती स्वासों पर ,
अरे ! निठुर मन पवन ,
तुझको इसकी खबर नहीं  ..... ...

जाने कितनी प्यास रही अव्यक्त सदा ,
इन अधरों पर ,
ओ !  तुहिन बिन्दु  ,
तुझको इसकी खबर नहीं  ....... ...

Thursday, July 11, 2019

तुम यूँ ही सदा मुस्कुराती रहो ,
जीत के गीत हरदम ही गाती रहो।
आशीष , शुभकामना।

मौन

मौन ही तो साधना है ,
मौन ही आराधना है ,
मौन में ही प्रश्न है ,
मौन में उत्तर समाहित ,
समझ सके गर जो भी कोई,
भाषा अबोले मौन की ,
तो , वह , इतना जान ले ,
मौन ही सबसे मुखर है ,
शेष सब ही गौण है ,
शेष सब ही गौण है  ........... 

( प्रकाशित  )

Tuesday, July 9, 2019

बाल गीत

दादी मेरी आओ जी ,
भूख लगी है मुझको जी ,
खाना कुछ ले आओ जी ,
कुछ मीठे कुछ खट्टे लाना ,
कुछ लाना नमकीन ,
दादी मैं तो चला घूमने ,
व्ह्वेन्सांग का चीन।

Monday, June 24, 2019

बच्चा प्यारा - प्यारा हूँ

बाबा मुझको प्यारे हैं ,
मैं बाबा का प्यारा हूँ ,
उनका राजदुलारा हूँ ,
मैं बच्चा प्यारा - प्यारा हूँ।

दादी मुझको प्यारी है ,
मैं दादी का प्यारा हूँ ,
उनका बड़ा सहारा हूँ ,
मैं बच्चा प्यारा - प्यारा हूँ।

मम्मी मुझको प्यारी है ,
मैं मम्मी का प्यारा  हूँ ,
उनके दिल का टुकड़ा हूँ ,
मैं बच्चा प्यारा - प्यारा हूँ।

पापा मुझको प्यारे हैं ,
मैं पापा का प्यारा हूँ ,
उनकी आँख का तारा हूँ ,
मैं बच्चा प्यारा - प्यारा हूँ।

Monday, May 20, 2019

एक लड़की नटखट सी

एक लड़की नटखट सी , नन्ही सी पर चँचल सी ,
दूर देश से आई है , याद पुरानी लाई है ,
बात बहुत कम करती है , खुद में खोई रहती है ,
अब शब्दों को चुगती है , मन ही मन कुछ बुनती है।

Thursday, April 11, 2019

चन्द शेऱ

                   ( 1  )
लोग तो , ना जाने ,
क्या -क्या ख़याल रखते हैं ,
खुद पर यकीं नहीं   ,
औरों की नक़ल करते  हैं।                                                 
                ( 2  )
तुम बेसुरे ही सही,
गाओ तो कोई गीत ,
अपना ही ,
बकरियां भी करती  हैं  में - में ,
अपनी ही आवाज में ,
भेड़ियों की नक़ल नहीं करतीं।
                  ( 3  )
बरसात के मौसम की महक मिलते ही ,
मेढक टर - टराने लगते हैं ,
फूल में खुशबू आने से पहले ही ,
लोभी भँवरे गुन - गुनाने लगते हैं।
                ( 4  )
राजा कहै फ़कीर हूँ ,
झोला मेरे साथ ,
सुनत कबीरा हँसि पड़ै ,
कर धर अपने माथ।
कर धर अपने माथ ,
सोच में पड़ै कबीरा ,
हैं फ़कीर जो सॉंच में ,
होगा उनका क्या नाथ   ?



Monday, March 25, 2019

बाल गीत

मैं नन्ही सी चिड़िया हूँ ,
रोज सवेरे जगती हूँ ,
चूँ -चूँ कर के गाती हूँ ,
मीठे गीत सुनाती हूँ ,
सूरज को जगाती  हूँ।  

तुम भी आओ बाग़ में ,
घूमो मेरे साथ  में  ,
संग तुम्हारे घूमूँगी,
संग तुम्हारे नाचूँगी ,
छम - छमा , छम ,छम ।

Wednesday, February 20, 2019

प्रेम पुजारी

ना जानूँ , जप -तप ना जानूँ  ,
पूजा - पाठ ना जानूँ  ,
मैं तो प्रेम पुजारी हूँ प्रभु ,
प्रेम ही करना  जानूँ ।

क्या होती स्तुति है तेरी ,
अक्षर ज्ञान ना जानूँ  ,
हाथ जोड़ कर नमन करूँ मैं ,
बस इतना ही जानूँ ।

चर औ अचर सब ही हैं तेरे ,
किस में भेद  करूँ ,
कण -कण में तू ही तो समाया ,
मैं तुझको ही मानूँ।

सुख - दुःख की क्या परिभाषा है ,
सुख - दुःख तुम्हरी माया ,
सुख में भी  दुःख , दुःख में भी सुख,
महिमा तेरी बखानूँ।

प्रेम ही करना जानूँ ,
प्रभु जी , प्रेम ही करना जानूँ।

( यह रचना दिनांक 03 -02 -2015 की है )

मन की पीड़ा

मैं भी मन की पीड़ा को बतला सकता हूँ ,
भारत की छलनी छाती की कथा सुना सकता हूँ।
रोज -रोज ही भारत के सैनिक शहीद होते हैं ,
रोज -रोज ही हम झूठी कसमें खाते रहते हैं। 
 जाने कितनी बेर हमने दुहराईं कसमें ,
" बेकार नहीं जाएगा वीर जवानों का बलिदान"
पर, रोज -रोज ही शत्रु हम पर हमला करते हैं ,
रोज -रोज भारत के सैनिक हो जाते बलिदान।

हुए शहीद जब पूत देश के , नेताओं ने कहा -
दूँगा चालीस लाख शहीद के हर परिवारों को ,
तब शहीद की माँओं ने भर कर आक्रोश कहा -
करो नहीं अपमान हमारे वीर सपूतों का ,
नहीं दाम के लिये दिया है  बेटों ने बलिदान ,
भारत की रक्षा में उनहोंने त्याग दिये  हैं प्राण।
कर सकते गर एक काम तो , मेरा ये कर दो ,
एक पूत के बदले दुश्मन के , चालीस सिर ला दो।

मंदिर , मस्जिद ,कुर्सी की चर्चा को तज कर ,
झूठे वादे  , झूठी कसमें खाना छोड़ कर ,
किसी एक भी दिन ,  सच में  ही , सच्चे मन से ,
सब मिल कर , कर लेते तुम , वीर सपूतों का सम्मान।
कुछ तो शरम करो , देशभक्ति का स्वाँग रचाने वालों ,
वक्त करेगा नहीं क्षमा , तुम जितना नाटक कर लो ,
है सीने में  ' आग " अगर , तो , सिर पर क़फ़न सजाओ ,
करने दो - दो हाथ शत्रु से सीमा पर आ जाओ।

तब कहना तुम वन्देमातरम , जय -जय हिन्दुस्तान ,
जय बोलो , जय बोलो , बोलो , जय - जय हिन्दुस्तान।

(  मासिक हिन्दी पत्रिका हलन्त  - मार्च 2019  में प्रकाशित )