Wednesday, September 18, 2019

तुम फिर आ गए बापू !

लो ,तुम फिर आ गए बापू !
अरे !  सुना है , 
तुम्हारी तो किसी ने ह्त्या कर दी थी ,
नहीं , नहीं , तुम मर भी कैसे सकते हो ,
हर वर्ष आते हो ,
आते हो क्या !
हमारे साथ ही रहते हो ,
इसी देश में ,
कभी रुपयों वाली नोट में  दीखते हो ,
कभी सिक्कों में ,
कभी लोगों की चर्चाओं में  ;
हाँ , तुम्हारे मारने की हर दिन
कोशिश होती है ,
पर तुम नहीं मरते ,
पता नहीं क्यों ,
लोग अन्दर ही अन्दर कुढ़ते हैं ,
पर तुम्हे मारें
इस बात से उन्हें भी डर लगता है ,
और तुम ,
अपने  उसी पुराने चिर मुद्रा में ,
हाथ में सोटा , कमर में लकोटि ,
आँख पर वही मोटा चश्मा पहने ,
इधर से उधर फिरते रहते हो।

अच्छा हुआ तुम आ गए ,
लो खुद ही देख लो अपना देश ,
लोग बड़े खुश हैं , अमन - चैन से हैं ,
लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं ,
कहाँ , लकड़ी और उपले
जला-जला कर खाना बनाते थे ,
उससे उठते धुएँ से
अपना आँख फोड़ लेते थे   ,
 अब गैस सिलिन्डर आ गया है ,
न लकड़ी गीली होने का डर ,
न उपले  के भींगने का डर ,
माचिस से भी छुटकारा ,
झट  लाइटर दबाओ ,
चट  गैस जलाओ ,
फटा - फट खाना  बनाओ।
अलबत्ता , गैस सिलिन्डर
इतना मँहगा होता जा रहा है , कि
लोगों के पाकिट को फाड़ कर
बाहर आ रहा है।

बैलगाड़ी और तांगे का तो जैसे
नामोनिशान ही मिट गया लगता है ,
घोड़ा तो अब पुलिस वालों के
घुड़साल में ही दीखते है ,
अब लोग , कार और स्कूटर पर
शान से चलते हैं ,
हाँ , पेट्रोल की कीमतों में
लगी आग से
उनके पैंट की जेब जरूर झुलस जाती है ,
पर सुख - सुविधा के लिए
यह सब तो सहना ही पड़ता  है।
सड़कें बहुत खूबसूरत हैं ,
दमदार , गढ्ढ़ेदार , हिचकोलेदार ,
कुछ लोग ठीक ही कहते हैं
सड़कों में जगह - जगह
गढ्ढे तो होने ही चाहिए ,
लोग देख-भाल कर
संभल - संभल कर सड़क पर चलेंगे ,
ना हों गढ्ढे तो सरपट भागेंगे ,
फिर फिसलेंगे , चोट खायेंगे ,
या फिर ,कौन जाने आगे क्या हो !
कार और स्कूटर भगाने वालों के लिये
सरकार ने  सशर्त नियमों सहित
कुछ कागजात साथमें रखना
अनिवार्य कर दिया है  ,
बिना उन कागजों  और शर्तों के
कार और स्कूटर
सरपट भागने वालों के लिये ,
सरकार ने अच्छा इंतजाम कर रक्खा है ,
कदम - कदम पर सरकारी अमला
इनका जम कर स्वागत कर रही है ,
लोग ख़ुशी - ख़ुशी ,
अपने स्वागत के लिये
हजार , दो हजार की कौन कहे
लाखों न्योछावर कर रहे हैं ,
भले , घर में उनके फाँका पड़  जाये ,
सरकार भी खुश , जनता भी खुश।
इस ख़ुशी की बात पर एक बात याद आई ,
तुम तो जीवन भर लड़ते ही रहे ,
कभी देश के लिये अंग्रेजों से लड़े ,
कभी गरीबों और किसानों के
हक़ के लिये लड़े  ,
किसानों की बात पर भी
एक बात याद आई -
सुना है कि विगत कुछ सालों में ,अभाव में
बहुत से किसानों ने आत्म -ह्त्या कर ली ,
कहीं ,कहीं तो किसान कई - कई
दिनों तक पानी में खड़े रहे ,
अरे भाई , पानी में खड़े रहो  , या
आत्म - ह्त्या ही करो ,
किसी का क्या बिगड़ता है ,
किसान कोई नेता थोड़े ही है , कि
हाय - हल्ला मचे ,
तुम होते तो शायद
अब भी किसानों के लिये लड़ते,
पर आज देखो ,
सब अपने -अपने लिये लड़ रहे हैं ,
देश जाए  ....................
पहले पेट पूजा ,
फिर काम दूजा।

धर्म -कर्म भी बहुत बढ़ गया है ,
तुम तो राम - राम रटते ही रह गये ,
आज देखो हर ओर
राम की जय -जयकार हो रही है ,
हर गली - मुहल्लों में
राम के नाम का पताका
लहराते लोग मिल जाते हैं ,
ये दीगर बात है  , कि
कभी - कभी  राह में
दुष्ट लोग  टकरा  जाते हैं , फिर क्या ,
हाथ के हाथ दण्ड का प्राबधान है ,
पीटते - पीटते  सीधा
स्वर्ग - लोक पहुँचा देते हैं ,
कोर्ट -कचहरी की
जरूरत ही नहीं पड़ती ,
वो कहते हैं ना , कि ,
क़ानून तो हम ही बनाते हैं ,
देश हमारा है , क़ानून हमारा है ,
न्यायपालिका हमारी है ,
मज़ाल है , लोग चूँ  तक करें !
उफ़ तक नहीं करते ,
झट उन्हें देश से
बाहर का रास्ता दिखाने
कई हमदर्द खड़े रहते हैं।
वैसे आज के सभी जन , देश -भक्त हैं ,
कोई किसी से कम नहीं ,
अगर कोई नहीं है , तो
वह है  ' जनता ' ,
क्योकि , वह सच बोलने के लिये
जरा -जरा मुँह खोलती है ,
उसका जरा सा मुँह खोलना ही
साबित करता है , कि ,
वह देश - भक्त नहीं  है।
आपका पुराना ज़माना थोड़े ही है ,
अंग्रेजी सत्ता भी
आपके  ' सच ' से काँप जाती थी !
चलो , आप आ ही गए हो , तो ,
खुद ही देख लो
20  वीं  सदी का अपना देश ,
किसी के बताने  या कहने की
जरूरत तो नहीं है।
सो हे बापू !
तुम्हारे आज के आगमन पर
हम सब छोटे - बड़े , लम्बे -ठिगने ,
गरीब - अमीर , ऊँच -नीच ,
लँगड़े -लूले , काने - कुतरे ,
गूँगे -बहरे , दोस्त - दुश्मन ,
मजदूर - अफसर ,सरकार -पत्रकार ,
स्वस्थ्य -बीमार , साहूकार -चाटूकार ,
 हम सभी आपको नमन करते हैं ...........
 
( प्रकाशित -  2019 )






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