Tuesday, September 8, 2015

गोरैया

आज मैंने बहुत दिनों बाद
गोरैया देखे ,
आश्चर्य हुआ।
गोरैए अब नहीं दीखते हैं ,
न पक्षियों का कलरव है
न ही ,
चिड़ियों की मधुर चहचहाहट
जिसे सुन कर , कभी ,
सूरज उग आता था ,
सवेरा हो गया है
इसका भान होता था .. ..
आँगन के नीम , और
बाहर बरगद के पेड़ कट गए हैं ,
अब घरों के पास
कोई पेड़ - दरख़्त नहीं दीखते हैं -
घरों के सौंदर्यीकरण में ,
सड़कों के चौड़ीकरण में ,
पेड़ काट दिए जाते हैं।
दीवारों की सुन्दरता के लिए
अब , दीवारों में
न ताखे रखे जाते हैं , न रोशनदान  .. ..
न रोशनदान हैं  ,  न ताखे ,
न  दरख़्त हैं , न कोटर ,
जहाँ कभी
गोरैयों के घोंसले होते थे ,
चिड़ियों के नीड़ बनते थे
और उनमें से
पक्षियों के बच्चों की ,
चिड़ियों के बच्चों की
चीं - चीं  आवाजें आती थीं  ....
तब , हम बहुत छोटे थे ,
दिन भर, देखते थे -
वे अपने बच्चों के लिये
चुग्गा लाते थे ,
बड़े प्यार से उन्हें खिलाते थे  ....
अब न घोंसलें हैं , न नीड़।
धीरे - धीरे विलुप्त हो रहे हैं -
कौए , मैना ,गिलहरी , गोरैया  ......
सोचता हूँ -
यदि नहीं होंगे पेड़ ,
नहीं होंगी चिड़िया ,
न होंगे पक्षी ,
न गिलहरी, न गोरैया
हम भी विलुप्त हो जायेंगे
इसी तरह
एक दिन  .....
                -- विजय कुमार सिन्हा " तरुण "
                    डी - 40 , रेस कोर्स , देहरादून
                     ( उत्तराखण्ड  )
                    पिन - 2248001