Friday, June 16, 2017

एक और महाभारत

मैं वक़्त हूँ  ,
मैं देखरहा हूँ ,,
चारों ओर लूट -खसोट हो रहा है ,
जिसे देखो , वही लूट रहा है ,
वही लुटेरा है ,
अमीर , और , अमीर  हो रहे हैं ,
गरीब  , और , गरीब हो रहे हैं ,
विद्वत जनों का अपमान हो रहा है ,
खल  पूजे जा रहे हैं ,
स्त्रियों की अस्मिता  ,
लूटी जा रही है  ,
मनुष्यता लुप्त हो रही है ,
क्रूरता अट्टहास कर रही है ,
पशुतापन बढ़ रहा  है  ,
दानवता पैर पसार रही है ,
हर गली - मोहल्ले  , चौराहों पर ,
रोज ही ,
द्रौपदी , निर्वसन  की जा रही है  ,
लोग मौन हैं  ,
युद्धिष्ठिर , अर्जुन ,भीम ,
नकुल और सहदेव  ,
तमाशाईयों की भीड़ में खड़े है  ,
दंभित प्रण कर  ," भीष्म पितामह  " ,
कौरवों की सेना से घिरे   ,
बार -बार
अपने धनुष पर  ,
प्रत्यंचा चढ़ा कर ,
अपनी  आत्मतुष्टि के लिए ,
टंकार दे रहे हैं  ,
एक और महाभारत की ,
जमीन तैयार हो रही है   .........

                      -------    ( प्रकाशित )