मां की थाती , और ,
धरोहर पितृजनों का ,
शुभाकांक्षी है ,
हे प्रियवर !
तेरे ही आशिर्वचनों का ।
तेरे ही पावन चरणों के
लेने रज स्पर्श ,
स्वागतार्थ हैं खड़े
पुष्प ले कर ,
कर में सहर्ष ।
हे !
मानस के राजहंस ,
भूल न जाना आना ,
मिलन केन्द्र है जीवन का ,
मिलना और मिलाना ।
जग सागर में उतर रहे ,
नव तरणी ले , दो मांझी ,
उद्द्वेलित भावों की लहरें ,
बंधे ,
नव परिणय में दो साथी ।
विहँस रहे संसार तीर पर ,
दो मझधार खेवैया ,
दें आशीष ,
पार लगायें ,
खे कर जीवन नैया
( 5 -2 -6 8 को रचित )