Sunday, June 7, 2020

आरज़ू

सोचता हूँ ,
जब भी तेरा दम निकले , मेरी बाहों में निकले ,
मेरे अरमान , मेरा प्यार , तेरे संग ही हो ले ,
ऐ ख़ुदा ! मेरी ये आरज़ू पूरी कर दे ,
मेरे प्यार को फिर से दुल्हन तो  बना दे।
मेरी हसरत है ,
मैं एक बार फिर तेरे माँग में सिन्दूर सजाऊँ ,
तेरे हाथों की हथेली में , मेंहदी तो रचाऊँ ,
तेरे पैरों को महावर के रंगों से सजा कर ,
तुझे रुख़सत करूँ पीहर , डोली में बिठा कर कर।

एक दीया जला रहा हूँ

एक पागल एक क़ब्र  पर लिख आया-
एक तुम ही तो थी , जो
मुझे तंग करती थी ,
अब , जब तुम नहीं हो , तो
मैं कुछ भी नहीं हूँ।

तुम्हे रोशनी पसंद नहीं थी ,
मुझे अँधेरा पसंद नहीं था ,
इसलिये तुम्हारी क़ब्र  पर ,
एक दीया जला रहा हूँ ,
ताकि , तुम्हें अहसास हो , कि
मैं अब भी तुम्हारे पास हूँ।