एक पागल एक क़ब्र पर लिख आया-
एक तुम ही तो थी , जो
मुझे तंग करती थी ,
अब , जब तुम नहीं हो , तो
मैं कुछ भी नहीं हूँ।
तुम्हे रोशनी पसंद नहीं थी ,
मुझे अँधेरा पसंद नहीं था ,
इसलिये तुम्हारी क़ब्र पर ,
एक दीया जला रहा हूँ ,
ताकि , तुम्हें अहसास हो , कि
मैं अब भी तुम्हारे पास हूँ।
एक तुम ही तो थी , जो
मुझे तंग करती थी ,
अब , जब तुम नहीं हो , तो
मैं कुछ भी नहीं हूँ।
तुम्हे रोशनी पसंद नहीं थी ,
मुझे अँधेरा पसंद नहीं था ,
इसलिये तुम्हारी क़ब्र पर ,
एक दीया जला रहा हूँ ,
ताकि , तुम्हें अहसास हो , कि
मैं अब भी तुम्हारे पास हूँ।
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