Monday, June 18, 2018

जब शाशन के नाक के नीचे

जहाँ मोल मानव जीवन का ,
कौड़ी सा आँका जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।

जहाँ धर्म के नाम कोई भी
कृत्य अधर्म कर जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।

कदम - कदम पर मुँह बाये ही ,
मिलती हो खड़ी अराजकता ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।

जब शाशन के नाक के नीचे ,
अस्मत नारी की लुटती है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।

जहाँ आदमी का जीवन ,
पशु से बदतर हो जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।

जहाँ शाशन भी आँख मूँद ,
बस दर्शक सा बन जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।