जहाँ मोल मानव जीवन का ,
कौड़ी सा आँका जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ धर्म के नाम कोई भी
कृत्य अधर्म कर जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
कदम - कदम पर मुँह बाये ही ,
मिलती हो खड़ी अराजकता ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जब शाशन के नाक के नीचे ,
अस्मत नारी की लुटती है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ आदमी का जीवन ,
पशु से बदतर हो जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ शाशन भी आँख मूँद ,
बस दर्शक सा बन जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
कौड़ी सा आँका जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ धर्म के नाम कोई भी
कृत्य अधर्म कर जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
कदम - कदम पर मुँह बाये ही ,
मिलती हो खड़ी अराजकता ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जब शाशन के नाक के नीचे ,
अस्मत नारी की लुटती है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ आदमी का जीवन ,
पशु से बदतर हो जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
जहाँ शाशन भी आँख मूँद ,
बस दर्शक सा बन जाता है ,
कविता कहना , गीत सुनाना ,
बेईमानी सा लगता है।
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