कहते हैं अब नहीं दिखती है गौरैया
जिसकी चीं -चीं की आवाज से
होती थी सुबह ,
वह अब कहीं खो गई है ,
जिसकी चहचहाहट से
घर - आँगन होता था गुलजार।
गौरैया शहरों में नहीं दिखती ,
दिखती है शहर की गलियों में ,
नहीं लगता है उसका दिल
कंक्रीट के महलों में ,
अट्टालिकायें और फ्लैट
उसे पसंद नहीं ,
शहर के मकानों में आँगन नहीं होते ,
ना ही सुखाये जाते हैं
गेहूँ - चावल जैसे अन्न।
शहर में लोग लाते हैं , खाते हैं
पके - पकाये भोजन ,
गौरैया चुगती है दाने ,
इसीलिये वह दिखती है
शहर की गलियों में ,
गली वाले घर में ,
जहाँ उसको मिलते हैं दाने ,
रहने को छोटी सी जगह ,
छप्पर - छाजन और ताखे ,
आज भी दिखती है गौरैया ,
गली वाले घर के आँगन में ,
क्योंकि वह है आँगन की चिड़िया ........
-------- मंजु सिन्हा
जिसकी चीं -चीं की आवाज से
होती थी सुबह ,
वह अब कहीं खो गई है ,
जिसकी चहचहाहट से
घर - आँगन होता था गुलजार।
गौरैया शहरों में नहीं दिखती ,
दिखती है शहर की गलियों में ,
नहीं लगता है उसका दिल
कंक्रीट के महलों में ,
अट्टालिकायें और फ्लैट
उसे पसंद नहीं ,
शहर के मकानों में आँगन नहीं होते ,
ना ही सुखाये जाते हैं
गेहूँ - चावल जैसे अन्न।
शहर में लोग लाते हैं , खाते हैं
पके - पकाये भोजन ,
गौरैया चुगती है दाने ,
इसीलिये वह दिखती है
शहर की गलियों में ,
गली वाले घर में ,
जहाँ उसको मिलते हैं दाने ,
रहने को छोटी सी जगह ,
छप्पर - छाजन और ताखे ,
आज भी दिखती है गौरैया ,
गली वाले घर के आँगन में ,
क्योंकि वह है आँगन की चिड़िया ........
-------- मंजु सिन्हा
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