विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
जब अपना ही हाथ देने लगा दर्द ,
बन कर नासूर ,
हमने अपना ही हाथ काट दिया ज़नाब ,
हाथ कटने का दर्द और मलाल तो होता है ,
पर टूटी हुई माला , टूटे हुए ख़्वाब , और
कटे हाथ नहीं जुड़ते।
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