Saturday, September 27, 2014

मैं हूँ मृदुल नदी की धारा

मैं हूँ मृदुल नदी की धारा ,
तू पर्वत का पत्थर ठहरा ,
सदा उमग में चूर रहे तुम ,
संवेदन से दूर रहे तुम।

पर जब छोड़ चले जाओगे ,
मुझको याद बहुत आओगे ,
नहीं सामने पाकर मुझको ,
तुम भी मुझ को याद करोगे।

जाने कितनी बेर लड़े हैं ,
फिर भी  हम में मेल रहे हैं ,
जीवन के ऊबट से पथ पर,
हम तुम दोनों साथ रहे हैं।

हम थे ईंट , कहाँ के रोड़ा ,
तुम थे पत्थर निपट ही पोढ़ा ,
पत्थर से भी क्या टकराना ,
यही सोच कर हार था माना।

रही शिकायत अगर कोई तो ,
मन में ही सब गोय लिया ।
मिलन की खुशियाँ कम न होवे ,
मन के मैल को धोय लिया ।

जीवन पथ पर कितने काँटे ,
आओ मिल कर इन्हें हटायें ,
फूल ख़ुशी के मिल कर बाँटे ,
इन खुशियों से मन महकायें।

बड़े-बड़े दुःख को भूलो तुम ,
छोटी-छोटी ख़ुशी संजो लो ,
जीवन कितना मधुर सरस है ,
जीवन को जी भर कर जी लो।




Friday, September 26, 2014

कोयल क्यों काली हुई ?

पाकर इतनी मीठी बोली ,
कोयल क्यों काली हुई  ?
कुहू-कुहू का रट क्यों करती ,
किसकी मतवाली हुई  ?
कूज , कूज कर शोर हो करती ,
क्यों कर तुम वातुल हुई  ?
आम्र-कुञ्ज में छिपती फिरती ,
क्यों लाजो वाली हुई 

Thursday, September 25, 2014

चिड़ियाँ प्यासी















भरी दुपहरी ,
 लू में तपती
चिड़ियाँ प्यासी ,
बहुत उदासी ,
सूरत रोनी ,
ढूंढ़ रही है पानी।

पानी कहाँ शहर में मिलता ,
यहाँ पानी पैसों से मिलता ,
बोलो चिड़ियाँ ,
कुछ तो बोलो ,
पास तुम्हारे ,
कितने पैसे ?

पिता ब्रह्म ,पिता ही पर्वत

माता धरणि सम हुई , पिता गगन से ऊँचे ,
दृढ़ और संतुलित सीख दे , सुत व सुता को सींचे।

पिता ब्रह्म ,पिता ही पर्वत , माँ शक्ति का स्रोत ,
अटल सत्य है सर्व लोक में , पिता गति के स्रोत।

पिता ने अपनी पौरुषता से , साहस का संचार किया ,
साम-दाम और दंड भेद का ,संतति को है ज्ञान दिया।

कवच, धैर्य व शौर्य - शील का , पिता ने ही है पहनाया ,
विषम काल में शांत भाव से , जीवन जीना सिखलाया।
 
माता ने ममता सिखलाया , पिता से सीखा दृढ़ता ,
उद्दम से ही भाग्य बदलता , कर्म ही भाग्य विधाता।
 
इस सुंदर सृष्टि में हमने , जीवन को साकार किया ,
नमन पिता को हम सब का है , जिसने यह उपकार किया।

Wednesday, September 17, 2014

माँ सा न कोई मिला

आँख खुली तो माँ को देखा , मुझको ईश मिला ,
ढूंढ़ा जग के कोने-कोने , माँ सा न कोई मिला।

माँ पर्वत है ,माँ ही धरनी , क्षीर का सागर माँ ,
जग यह तपता मरुस्थल है ,शीतल जल है माँ।

गोद में जिसके स्वर्ग बसा है , वह मूरत है माँ ,
चरणों में जिसके तीरथ है ,वह सूरत है माँ।

आँचल में आकाश समाया , है देवी सी माँ ,
सब गुरुओं में जो गुरुतर है ,वह है केवल माँ। 

कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना
















कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना ,
ये तो एक बहाना है ,
सच्ची-सच्ची बात है यारों ,
मिलना और मिलाना  है।

जीवन नीरस हो जाए न ,
हँसना और हँसाना है ,
दो दिन की इस बस्ती में ,
सब का एक फ़साना है।

नहीं महत्तर , नहीं लघुतर ,
भेद यहाँ नहीं माना है ,
मस्ती सब की एक यहाँ है ,
सब का एक तराना है।

चिड़ियों सा है मिल कर रहना ,
चिड़ियों सा ही गाना है ,
हमने तो बस गीत-ग़ज़ल में ,
ईश्वर को पहचाना है।


Wednesday, September 10, 2014

पर्यावरण बचाना होगा।


















ईश ने जब यह सृष्टि रची ,
जीने के साधन रच डाले ,
पर्वत-नदियाँ झरनों के संग ,
मनभावन प्रकृति रच डाले।
शुद्ध हवा में सांस ले सकें ,
हरे-भरे कानन रच डाले,
सभी स्वस्थ्य हों ,सभी सुखी हों,
नदियों में मीठे जल डाले।
उसकी इस सुन्दर सृष्टि को ,
प्रदूषित हमने कर डाले  ,
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर ,
धरती तहस-नहस कर डाले।
तोड़ पहाड़ों की छाती को ,
द्वार मौत के हमने खोले ,
नदियों के मुख बांध-बांध कर ,
विभीषिका के पथ हैं खोले।
किया विकास  बहुत ही हमने ,
कल और कारखाने खोले ,
धुआँ भरा संसार रचा  कर
दरवाजे विनाश के खोले।
हरे-भरे पेड़ों को काट कर ,
कंकड़-महल खड़े कर डाले ,
लगी सूखने नदियाँ  हैं अब ,
सोये हैं  हो कर मतवाले।
पर्वत-राज हिमालय ने तब ,
कहर स्वर्ग पर बरपा डाले  ,
रूप बदल कर नदियों ने भी ,
जल-प्लावित जन्नत कर डाले।
हाहाकार मचा  है जग में ,
त्राहि-त्राहि हर ओर मची है ,
चीख-पुकार, रुदन-क्रंदन से ,
कोई नहीं बचाने वाले।
भीषण औ विकराल लहर ने ,
होटल-महल सभी धो डाले ,
आज प्रकृति ने छेड़-छाड़ के  ,
इसके सबक हमें दे डाले।
अब भी अगर नहीं संभले तो ,
अपनी मन की करने वाले ,
नदियाँ - धरती सूख जायेंगी ,
सूरज कुपित हैं होने वाले।

खाली न हो जाए धरती ,
हमको इसे बचाना होगा ,
जीवित रहे संतान हमारी ,
हमको पेड़ लगाना होगा।
इससे पहले , हम कुछ खोयें ,
हम को अलख जगाना होगा ,
बची रहे ये धरा हमारी ,
पर्यावरण बचाना होगा।

   -----    ( प्रकाशित )

सुगना बोलै …



सुगना बोलै दिन-रात हो रामा
सुगना बोलै  …
सोनमा के पिंजरा न सुगना के भावै ,
टक - टक, निहारै आकाश हो रामा ,
सुगना बोलै। ……
कहै महतारी , मोहे मन नहीं भावै ,
बाँधौ न सुगना के पिंजरे में रामा ,
सुगना बोलै.......
मचिया बइठल दादी कहै पूत सोनमा ,
केहू के न बंधन में बांधउ  हो रामा ,
सुगना बोलै ……।
हँसि - हँसि  कहै बहिना सुकुमारी ,
सुगना के करि देहु आजाद हो रामा ,
सुगना बोलै ………