आँख खुली तो माँ को देखा , मुझको ईश मिला ,
ढूंढ़ा जग के कोने-कोने , माँ सा न कोई मिला।
माँ पर्वत है ,माँ ही धरनी , क्षीर का सागर माँ ,
जग यह तपता मरुस्थल है ,शीतल जल है माँ।
गोद में जिसके स्वर्ग बसा है , वह मूरत है माँ ,
चरणों में जिसके तीरथ है ,वह सूरत है माँ।
आँचल में आकाश समाया , है देवी सी माँ ,
सब गुरुओं में जो गुरुतर है ,वह है केवल माँ।
ढूंढ़ा जग के कोने-कोने , माँ सा न कोई मिला।
माँ पर्वत है ,माँ ही धरनी , क्षीर का सागर माँ ,
जग यह तपता मरुस्थल है ,शीतल जल है माँ।
गोद में जिसके स्वर्ग बसा है , वह मूरत है माँ ,
चरणों में जिसके तीरथ है ,वह सूरत है माँ।
आँचल में आकाश समाया , है देवी सी माँ ,
सब गुरुओं में जो गुरुतर है ,वह है केवल माँ।
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