Wednesday, September 17, 2014

कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना
















कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना ,
ये तो एक बहाना है ,
सच्ची-सच्ची बात है यारों ,
मिलना और मिलाना  है।

जीवन नीरस हो जाए न ,
हँसना और हँसाना है ,
दो दिन की इस बस्ती में ,
सब का एक फ़साना है।

नहीं महत्तर , नहीं लघुतर ,
भेद यहाँ नहीं माना है ,
मस्ती सब की एक यहाँ है ,
सब का एक तराना है।

चिड़ियों सा है मिल कर रहना ,
चिड़ियों सा ही गाना है ,
हमने तो बस गीत-ग़ज़ल में ,
ईश्वर को पहचाना है।


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