Thursday, May 28, 2020

झूठ और सच

' झूठ  ', ' सच ' से बड़ा होता है ,
लम्बे -लम्बे डग मार लेता है ,
' झूठ '  में तीन मात्रा ,
जब कि ,
' सच '  में दो ही मात्रा होता है ,
जरा सा फूँक दो , तो ,             
' सच ' हवा में उड़ जाता है ,
' झूठ ' पैर टिकाये ,
खड़ा रहता है।

Tuesday, May 19, 2020

त्रासदी

किसी मजदूर ने ही बनाये होंगे
रेल के डिब्बे ,
रेल के इंजन ,                                               
रेल की पटरियां ,
लेकिन कितनी त्रासदी है  ( कि  )
यह उन्हें नसीब  नहीं ,
( उल्टे ,रौंदती चली जाती है  )
कर देती है क्षत -विक्षत उनके शरीर ,
शरीर के साथ मन ,
छीन लेती है
उनकी पोटली में बंधी रोटियां
और                                                        
छितरा देती है पटरियों पर ।
नहीं , वह भूख से नहीं मरा ,
ना ही वह पैदल चलने से मरा ,
वह तो अपनी मौत मर गया है ,
आँसू न बहायें ,
कीमती है ,
मजदूरों का क्या !
ये तो यूँ ही मर - खप जाते हैं ,
मजदूर ही तो हैं ,
कोई  ......... ,
( लाट साहब तो नहीं )
वैसे , आँसुओं का क्या है ,
सुना है ,
घड़ियाल भी बहाते हैं
आठ - आठ आँसू    .... .....
रचना तिथि : -  09 -05 -2020

Friday, May 15, 2020

मैं ' सच ' बेच रहा हूँ

      ( 1  )
मैं  ' सच ' बेच रहा हूँ ,
बोलो , खरीदोगे ?
मँहगा नहीं है ,
बहुत सस्ता है ,
क्योकि ,  ' झूठ '
' सच 'से ज्यादा टिकाऊ है।
              ( 2 )
खुद के तलवे लगे जो जलने ,
मुझमें भाव दया का आया ,
नाव डूबने लगा जो अपना ,
मल्लाहों का याद हो आया ,
वरना ये तो सब अछूत हैं ,
कह कर इनको दूर भगाया।

Monday, May 11, 2020

श्रद्धांजलि - 1

समेट लेना वे सारी रोटियां ,
जो बिखरी पड़ी हैं
हमारी लाशों के बीच ,              
रेलवे लाइन किनारे ,
और ,
बाँट देना ,
उन गरीब ,बेबस मजदूरों,
उन भूखे , बदनसीब बच्चों
और
औरतों के बीच ,
जो न जाने कब  से
रोटी और घर की तलाश में
भागे जा रहे हैं
पाँव -पैदल ,
न सूरज उन्हें डराता ,
न बारिस उन्हें भिगोता ,
न ठंढ उन्हें सताता।
उनके साहस ,
उनके अडिग विश्वास ,
जिनके रीढ़ की हड्डी पर
यह भुवन टिका है ,
जो विश्व के विकास की
एक धुरी है ,
क्या नाम दें !
रचना तिथि :- 09 -05 -2020

Tuesday, May 5, 2020

बच्चों की कविता

भौं -भौं करता डॉगी आया  ,
खें -खें  करता बन्दर ,
हाथी दादा डर के मारे ,
बैठे घर के अन्दर।   

छोड़ चूहे बिल्ली खाती अब,
गाजर और टमाटर ,
खरहा देखो बड़े चाव से ,
खाये लाल चुकन्दर।

बादल देख के मेढक बोला ,
टर -टर -टर -टर -टर ,
डर कर मछली रानी भागी ,
पानी के अन्दर।

काँव -काँव  कौवा करता है ,
मैना पटर -पटर ,
सोन चिड़ैया का है देखो,
कितना मीठा स्वर।