Sunday, June 22, 2014

वतन के वास्ते


एक  पत्थर तो  हवा में उछाल कर देखो ,
कहर बन कर,दुश्मन पर बरस कर देखो ,
हो नाम शहीदों में तुम्हारा भी  कहीं ,
चमन के वास्ते , सिर पर कफ़न बाँध कर देखो।

आजादी के शोलों को जला कर रखो ,
दुश्मन से गुलिस्तां को बचा कर रखो ,
कोई नापाक निगाहें न वतन पर उठे ,
अपनी आँखों में चिंगारी सजा कर रखो।

वतन के वास्ते ,जीने का फ़न सीख लो ,
कुर्बानी का जज्वये हुनर तो सीख लो ,
दे देंगे जां ,तिरंगा न झुकने देंगे ,
अपने कलम को तलवार बनाना तो सीख लो।

नागफनी उग आया है





नागफनी  उग आया  है
---------------------------                                                      


तमाम उम्र समझते रहे हम,
रिश्तों के समीकरण ,
देखता हूँ अब इनका भी
हो गया है भौतिकिकरण।
खो गई है लावण्यता ,
हर चेहरा मुरझाया है ,
यह सच है कि  फूल कोई 
असमय ही कुम्हलाया है
"रिश्तों का अनुबंध"
अर्थ " पर टिक गया है,
" अर्थ " बिना हर रिश्ता ,
अर्थहीन हो गया है।
गैर  से दीखते हैं ,अब ,
सब ,अपने भी पराये,
लगता है  रिश्तों में ,
नागफ़नी  उग आया है।