Monday, August 5, 2019

नए दरख़्त उग आये हैं

बूढ़े  दरख़्तों  से कहो ,
वे  ख़ुद छोड़ दें वह जगह ,
नए दरख़्त उग आये हैं
नए अंदाज़ में ,
अब उनकी ज़रुरत  नहीं है  ......

बरगद से कहो ,
वे इतराना छोड़ दें ,
पंछियों  को देते हैं बसेरा
और ,
करते हैं छाया ,
थके मुसाफिरों पर  .....

पीपल से कहो,
मुस्कुराना छोड़ दें  ,
हम ही हैं 
देते हैं शुद्ध हवा
ऑक्सीजन ,  जीने के लिए ,
अब नया ज़माना आया है ,
नयी तकनीक आ गई है ,
सब कुछ हम स्वयं कर लेंगे ,
अब उनकी  कोई ज़रूरत  नहीं है। ......