Sunday, September 20, 2020

, माँ जैसी ही लगती है

जब भी वह मुझ से मिलती है ,

वह बड़े प्यार से मिलती है ,

उसकी वाणी तो सच मुझको ,

मीठी मिश्री सी लगती है। 

वह वृद्धा मुझको तो , मेरी ,

हाँ  ,माँ जैसी ही लगती है। 

आँखों में प्यार का भाव भरा ,

चेहरे पर झुर्री सजी हुई ,

रख दे गर  सिर  पर हाथ जो वो ,

आशीष की बारिस करती है। 

वह वृद्धा मुझको तो  मेरी ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

मैं जब भी नत हो जाता हूँ ,

पावन चरणों को छूने को ,

वो , बाँहें पकड़ उठाती है ,

वह अपने गले लगाती है। 

वह वृद्ध मुझको तो , सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

मैं धन्य - धन्य हो जाता हूँ ,

उस क्षण सुख स्वर्ग का पाता हूँ ,

आँखों से झड़ते हैंआँसू ,

बेटा कह मुझे बुलाती है। 

वह वृद्धा मुझ को तो सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

हो सिर पर जिसके हाथ सदा ,

माँ के स्नेहिल करकमलों का ,

दुःख - दर्दों की ही कौन कहे ,

मौत लौट कर जाती है। 

वह वृद्धा मुझको तो , सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

रचना तिथि -- 13 09 -2020

 

Tuesday, September 8, 2020

बस एक तेरा नूर

 बहुत गुजर गया है ,

चन्द रोज और गुजर जायेंगे ,

हम तो वो दरख़्त हैं , जो 

कुछ न कुछ देकर ही जायेंगे। 

ज़माने ने दिया है ,

मुझको बहुत कुछ ,

प्यार , मोहब्बत ,इश्क और अखलाक़ ,

सब कुछ तुमको ही नज़र कर जायेँगे। 

किसी से क्या शिक़वा , क्या गिला ,

सब यहीं छोड़ जायेंगे ,

तुम्हारी यादों के सिवा ,

कुछ और ना ले जायेंगे। 

ये मकां , ये असबाब , ये साजो - सामां ,

सब यहीं रह जायेँगे ,

बस एक तेरा नूर  , तेरी मुस्कुराहट ,

जनम - जनम याद आयेंगे। 

( रचना तिथि : - 03 - 09 - 2020 )