Wednesday, February 20, 2019

प्रेम पुजारी

ना जानूँ , जप -तप ना जानूँ  ,
पूजा - पाठ ना जानूँ  ,
मैं तो प्रेम पुजारी हूँ प्रभु ,
प्रेम ही करना  जानूँ ।

क्या होती स्तुति है तेरी ,
अक्षर ज्ञान ना जानूँ  ,
हाथ जोड़ कर नमन करूँ मैं ,
बस इतना ही जानूँ ।

चर औ अचर सब ही हैं तेरे ,
किस में भेद  करूँ ,
कण -कण में तू ही तो समाया ,
मैं तुझको ही मानूँ।

सुख - दुःख की क्या परिभाषा है ,
सुख - दुःख तुम्हरी माया ,
सुख में भी  दुःख , दुःख में भी सुख,
महिमा तेरी बखानूँ।

प्रेम ही करना जानूँ ,
प्रभु जी , प्रेम ही करना जानूँ।

( यह रचना दिनांक 03 -02 -2015 की है )

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