ना जानूँ , जप -तप ना जानूँ ,
पूजा - पाठ ना जानूँ ,
मैं तो प्रेम पुजारी हूँ प्रभु ,
प्रेम ही करना जानूँ ।
क्या होती स्तुति है तेरी ,
अक्षर ज्ञान ना जानूँ ,
हाथ जोड़ कर नमन करूँ मैं ,
बस इतना ही जानूँ ।
चर औ अचर सब ही हैं तेरे ,
किस में भेद करूँ ,
कण -कण में तू ही तो समाया ,
मैं तुझको ही मानूँ।
सुख - दुःख की क्या परिभाषा है ,
सुख - दुःख तुम्हरी माया ,
सुख में भी दुःख , दुःख में भी सुख,
महिमा तेरी बखानूँ।
प्रेम ही करना जानूँ ,
प्रभु जी , प्रेम ही करना जानूँ।
( यह रचना दिनांक 03 -02 -2015 की है )
पूजा - पाठ ना जानूँ ,
मैं तो प्रेम पुजारी हूँ प्रभु ,
प्रेम ही करना जानूँ ।
क्या होती स्तुति है तेरी ,
अक्षर ज्ञान ना जानूँ ,
हाथ जोड़ कर नमन करूँ मैं ,
बस इतना ही जानूँ ।
चर औ अचर सब ही हैं तेरे ,
किस में भेद करूँ ,
कण -कण में तू ही तो समाया ,
मैं तुझको ही मानूँ।
सुख - दुःख की क्या परिभाषा है ,
सुख - दुःख तुम्हरी माया ,
सुख में भी दुःख , दुःख में भी सुख,
महिमा तेरी बखानूँ।
प्रेम ही करना जानूँ ,
प्रभु जी , प्रेम ही करना जानूँ।
( यह रचना दिनांक 03 -02 -2015 की है )
No comments:
Post a Comment