एक दिन
पेड़ और पेड़ के पत्तों में बहस छिड़ गई ,
पेड़ ने कहा
मुझ से तू है ,
तुझसे मैं नहीं ,
मैं तुम्हें सींचता हूँ ,
तुम्हें जिलाता हूँ।
पत्तों ने कहा
यह सच है
पर यह भी सच है
पत्तों के बिना
पेड़ की क्या विसात है।
हम पत्ते हैं ,तो ,
तुम्हारी पहचान है ,
हम नहीं रहेंगे , तो ,
तुम्हारी क्या पहचान है ?
पेड़ को बड़ा गुस्सा आया ,
बोला कुछ नहीं , पर
पत्तों को सबक सिखाने की
जुगत में लगा रहा।
फिर क्या था ,
पेड़ को एक दिन मौक़ा मिल गया ,
उसने अपने साथी
बादल और हवा को बुला लिया ,
वह जोर , जोर से झूमने लगा ,
तेज आँधियां चलने लगी ,
तेज बारिस हुई ,खूब ओले पड़े ,
इतने तेज कि पेड़ के
सारे पत्ते झड़ गये ,
यहाँ तक कि पेड़ की जड़ से
मिट्टी भी काट - काट कर
बहा ले गई।
पेड़ से गिरे पत्ते
चुप - चाप आँसू बहाते रहे।
पेड़ ने अट्टहास किया -
अब सड़ो जमीन पर पड़े - पड़े ,
पत्तों ने कुछ नहीं कहा।
दूसरे दिन धूप निकल आई ,
पत्तों ने सूरज से विनती किया -
प्रभु , तुम में जो शक्ति है
मुझ में भी भर दो ,
मैं भी लोगों के ताप हर सकूँ।
सूरज कुछ नहीं बोला ,
बस दिन भर पत्तों संग खेलता रहा।
दूसरे दिन सूरज फिर निकला ,
सूरज की किरणों के साथ -साथ
कुछ गरीब लोग
पत्तों के पास आ गये ,
कल्ह जो पत्ते भींगे थे , गीले थे
आज सूख गए थे ,
उन गरीब लोगों ने उन पत्तों को
एक जगह इकट्ठा कर
बोरियों में भर लिया ,
फिर अपने कन्धों पर लाद
अपने घर ले गये।
बिना पत्तों के वह ठूंठनसा पेड़
अकेला खड़ा रह गया।
फिर आ गया ढंढ का मौसम ,
उन गरीब लोगों ने
जो पत्तों को बटोर कर ले गए थे
बोरियों से पत्ते निकाल कर
जलाने लगे ,
पत्ते ख़ुशी - ख़ुशी जलने लगे ,
उसको चारों ओर से
लोग घेर कर खड़े थे ,और
ठंढ से अपना बचाव कर रहे थे।
पत्तों ने सूरज को याद किया -
तुमने मुझमें अपनी शक्ति दी ,
मैं भी इन भोले
गरीबों के काम आ सका ,
यही मेरा बड़ा सौभाग्य है।
इधर ,
एक दिन फिर तेज हवा चली ,
तेज हवाओं के झकोरे
पेड़ सह नहीं सका ,
उसकी जड़ें तो पहले ही
खोखली हो गईं थीं ,
वह पेड़ धराशयी हो गया।
दूसरे दिन लोगों ने देखा ,
कोई कुल्हाड़ी ले कर आया ,
कोई आरी लेकर आया ,
फिर क्या था -
देखते - देखते
किसी ने आरी से उसके पेट चीर दिये ,
किसी ने कुल्हाड़ी से उसके सिर ,
किसी ने उसके हाथ ,
किसी ने उसके पैर काटे ,
जानो , उसके शरीर के
टुकड़े - टुकड़े कर दिये ,
फिर , ट्रकों में भर कर ,
अपने गोदाम ले गए ,
वहाँ उन्हें जमीन पर
बेरहमी से पटक दिया।
पेड़ के टुकड़े वहीँ जमीन पर
पड़े - पड़े , कुछ सड़ गए ,
कुछ में कीड़े लग गए
कुछ को बार - बार
आरी से चीरा गया ,
कुल्हाड़ी से काटा गया ,
अब पेड़ के कटे टुकड़ों को
पत्तों की याद आने लगी ,
पर अब न तो वह पेड़ था
ना पत्ते थे ,
सब कुछ ख़त्म हो गया था ,
पर कटते - कटते
पेड़ के टुकड़ों ने सोचा -
काश हम दर्प ना करते ,
अपने अहंकार में
पत्तों के महत्व को नहीं समझ सके ,
ना उन्हें गिराते ,
ना खुद मिटते , ना पत्ते ,
हम सब हरे - भरे ही रहते ,
सदियों -सदियों तक ,
सदियों -सदियों तक ........
पेड़ और पेड़ के पत्तों में बहस छिड़ गई ,
पेड़ ने कहा
मुझ से तू है ,
तुझसे मैं नहीं ,
मैं तुम्हें सींचता हूँ ,
तुम्हें जिलाता हूँ।
पत्तों ने कहा
यह सच है
पर यह भी सच है
पत्तों के बिना
पेड़ की क्या विसात है।
हम पत्ते हैं ,तो ,
तुम्हारी पहचान है ,
हम नहीं रहेंगे , तो ,
तुम्हारी क्या पहचान है ?
पेड़ को बड़ा गुस्सा आया ,
बोला कुछ नहीं , पर
पत्तों को सबक सिखाने की
जुगत में लगा रहा।
फिर क्या था ,
पेड़ को एक दिन मौक़ा मिल गया ,
उसने अपने साथी
बादल और हवा को बुला लिया ,
वह जोर , जोर से झूमने लगा ,
तेज आँधियां चलने लगी ,
तेज बारिस हुई ,खूब ओले पड़े ,
इतने तेज कि पेड़ के
सारे पत्ते झड़ गये ,
यहाँ तक कि पेड़ की जड़ से
मिट्टी भी काट - काट कर
बहा ले गई।
पेड़ से गिरे पत्ते
चुप - चाप आँसू बहाते रहे।
पेड़ ने अट्टहास किया -
अब सड़ो जमीन पर पड़े - पड़े ,
पत्तों ने कुछ नहीं कहा।
दूसरे दिन धूप निकल आई ,
पत्तों ने सूरज से विनती किया -
प्रभु , तुम में जो शक्ति है
मुझ में भी भर दो ,
मैं भी लोगों के ताप हर सकूँ।
सूरज कुछ नहीं बोला ,
बस दिन भर पत्तों संग खेलता रहा।
दूसरे दिन सूरज फिर निकला ,
सूरज की किरणों के साथ -साथ
कुछ गरीब लोग
पत्तों के पास आ गये ,
कल्ह जो पत्ते भींगे थे , गीले थे
आज सूख गए थे ,
उन गरीब लोगों ने उन पत्तों को
एक जगह इकट्ठा कर
बोरियों में भर लिया ,
फिर अपने कन्धों पर लाद
अपने घर ले गये।
बिना पत्तों के वह ठूंठनसा पेड़
अकेला खड़ा रह गया।
फिर आ गया ढंढ का मौसम ,
उन गरीब लोगों ने
जो पत्तों को बटोर कर ले गए थे
बोरियों से पत्ते निकाल कर
जलाने लगे ,
पत्ते ख़ुशी - ख़ुशी जलने लगे ,
उसको चारों ओर से
लोग घेर कर खड़े थे ,और
ठंढ से अपना बचाव कर रहे थे।
पत्तों ने सूरज को याद किया -
तुमने मुझमें अपनी शक्ति दी ,
मैं भी इन भोले
गरीबों के काम आ सका ,
यही मेरा बड़ा सौभाग्य है।
इधर ,
एक दिन फिर तेज हवा चली ,
तेज हवाओं के झकोरे
पेड़ सह नहीं सका ,
उसकी जड़ें तो पहले ही
खोखली हो गईं थीं ,
वह पेड़ धराशयी हो गया।
दूसरे दिन लोगों ने देखा ,
कोई कुल्हाड़ी ले कर आया ,
कोई आरी लेकर आया ,
फिर क्या था -
देखते - देखते
किसी ने आरी से उसके पेट चीर दिये ,
किसी ने कुल्हाड़ी से उसके सिर ,
किसी ने उसके हाथ ,
किसी ने उसके पैर काटे ,
जानो , उसके शरीर के
टुकड़े - टुकड़े कर दिये ,
फिर , ट्रकों में भर कर ,
अपने गोदाम ले गए ,
वहाँ उन्हें जमीन पर
बेरहमी से पटक दिया।
पेड़ के टुकड़े वहीँ जमीन पर
पड़े - पड़े , कुछ सड़ गए ,
कुछ में कीड़े लग गए
कुछ को बार - बार
आरी से चीरा गया ,
कुल्हाड़ी से काटा गया ,
अब पेड़ के कटे टुकड़ों को
पत्तों की याद आने लगी ,
पर अब न तो वह पेड़ था
ना पत्ते थे ,
सब कुछ ख़त्म हो गया था ,
पर कटते - कटते
पेड़ के टुकड़ों ने सोचा -
काश हम दर्प ना करते ,
अपने अहंकार में
पत्तों के महत्व को नहीं समझ सके ,
ना उन्हें गिराते ,
ना खुद मिटते , ना पत्ते ,
हम सब हरे - भरे ही रहते ,
सदियों -सदियों तक ,
सदियों -सदियों तक ........
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