ये गुनगुनाती सी हवा,
ये लहलहाते खेत,
ये गाँव की पगडंडियाँ ,
ये टेढ़े - मेढ़े मेड़ ,
हैं ,मेरे मन को हुलसाते ,
हमें , ये गाँव बुलाते हैं ।
ये मीठी , धान की खुशबू,
लरजते , गेहूँ की बाली ,
वो नीले फूल तीसी के ,
वो पीले फूल सरसों के ,
इशारे मुझको करते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं ।
जहाँ , रख कांधो पर , विश्वास का
हल , कृषक चलते हैं ,
बुआई धान की करते जहाँ ,
गाती कृषक बाला ,
झमक कर घन बरसते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं ।
यह बस्ती है किसानों की ,
यह सच्चों का बसेरा है ,
निकल सूरज लगाता है ,
जहाँ, नित रोज फेरा है ,
जहां , मिल प्यार बोते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं ।
( 21-3-2012 )
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