कितना अच्छा लगता है
अपने नाम के आगे
एक ' विशेषण ' का लग जाना ,
एक विशेष ' वर्ग ' से
पुरस्कृत हो जाना ,
कितना सुन्दर और स्वर्णिम है
वह शब्द और संबोधन !
जब इतने बड़े सम्मान से
हमें नवाज़ा जाता है ,
' ख़ैरात 'में जब
इतना सब कुछ मिल जाता है ,
' श्रम 'का झमेला क्यों पालें ?
क्यों पसीना बहायें ?
कादो - कीचड़ में क्यों सनें ?
जब हमें
एक मेहमान की तरह
मिल जाता है
सारा आदर - सत्कार ,
मुफ़्त का दाना - खाना ,
और , ' वज़ीफा '
फिर क्यों ढोयें हम
व्यर्थ का पुस्तक का भार ?
" समान अधिकार " का नारा
संविधान की किताबों में है ,
धरातल पर नहीं ,
किताबों में तो बहुत कुछ लिखा है ,
पर सब कुछ सत्य तो नहीं ,
यही सत्य है ।
अपने नाम के आगे
एक ' विशेषण ' का लग जाना ,
एक विशेष ' वर्ग ' से
पुरस्कृत हो जाना ,
कितना सुन्दर और स्वर्णिम है
वह शब्द और संबोधन !
जब इतने बड़े सम्मान से
हमें नवाज़ा जाता है ,
' ख़ैरात 'में जब
इतना सब कुछ मिल जाता है ,
' श्रम 'का झमेला क्यों पालें ?
क्यों पसीना बहायें ?
कादो - कीचड़ में क्यों सनें ?
जब हमें
एक मेहमान की तरह
मिल जाता है
सारा आदर - सत्कार ,
मुफ़्त का दाना - खाना ,
और , ' वज़ीफा '
फिर क्यों ढोयें हम
व्यर्थ का पुस्तक का भार ?
" समान अधिकार " का नारा
संविधान की किताबों में है ,
धरातल पर नहीं ,
किताबों में तो बहुत कुछ लिखा है ,
पर सब कुछ सत्य तो नहीं ,
यही सत्य है ।
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