दिल के दर्द उकेरूँ कैसे
इस कागज़ के टुकड़े पर ,
मन की व्यथा बताऊँ कैसे
काँप रहे सुकुमार अधर ।
जिधर - जिधर दृष्टि करता हूँ ,
विवश पाँचाली दिखती है ,
बीच सड़क पर दुर्योधन की
फ़ौज खड़ी दिखती है ।
विज्ञापन के नारों में बस
है सु:शाशन का नारा ,
राजनीति के चक्र्व्यूह में
अभिमन्यु सदा ही हारा।
हर दिन , हर शै ,गली - गली में ,
है चीत्कार बेटी का ,
सुनकर भी है नहीं टूटता ,
तुला यहाँ पर न्याय का।
जाने कितनी निर्भया रोज
हा ! निरपराध मरती है ,
जाने कितनी बिटियों के तन ,
नित ही विदीर्ण होती है।
है बड़े सुनहरे पट्टी पर ,
बेटी बचाव का नारा ,
कैसे पढ़ पाएगी बेटी ,
शाशन - समाज नक्कारा।
इस कागज़ के टुकड़े पर ,
मन की व्यथा बताऊँ कैसे
काँप रहे सुकुमार अधर ।
जिधर - जिधर दृष्टि करता हूँ ,
विवश पाँचाली दिखती है ,
बीच सड़क पर दुर्योधन की
फ़ौज खड़ी दिखती है ।
विज्ञापन के नारों में बस
है सु:शाशन का नारा ,
राजनीति के चक्र्व्यूह में
अभिमन्यु सदा ही हारा।
हर दिन , हर शै ,गली - गली में ,
है चीत्कार बेटी का ,
सुनकर भी है नहीं टूटता ,
तुला यहाँ पर न्याय का।
जाने कितनी निर्भया रोज
हा ! निरपराध मरती है ,
जाने कितनी बिटियों के तन ,
नित ही विदीर्ण होती है।
है बड़े सुनहरे पट्टी पर ,
बेटी बचाव का नारा ,
कैसे पढ़ पाएगी बेटी ,
शाशन - समाज नक्कारा।
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