Tuesday, October 30, 2018

कभी - कभी तुम अपने मन से

कभी - कभी तुम अपने मन से ,
मन की बातें कर के देखो ।
कभी -  कभी मन के भावों को ,
मन ही मन में पढ़ कर देखो ।
कभी - कभी तुम चुपके - चुपके ,
चुपके - चुपके रो कर देखो ।
कभी - कभी दिल के जख्मों को ,
थोड़ी और हवा कर देखो ।
आँसू गर जो चाहे छलकना ,
आँसू को समझा कर देखो ।
होंगे मीत तुम्हारे शत - शत ,
उनके मन को पढ़ कर देखो ।
सुख - दुःख हैं जीवन के संगी ,
उनको मीत बना कर देखो ।
सुख में तो सब ही हँसते हैं ,
दुःख में भी मुस्का कर देखो ।
कभी - कभी तुम अपने मन से ,
मन की बातें कर के देख ।

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