Saturday, September 29, 2018

सिर पर धूप बहुत है

सिर पर धूप बहुत है
सँभल कर चलना  ,
हाक़िम को अच्छा नहीं लगता
रात को रात , और
दिन को दिन बताना ,
हाक़िम कोई भी हो
दिन में तारे दिखा सकता है ,
इसलिए ,
दिन को रात और रात को दिन बताना।
हाकिम की मर्जी हो , तो
बकरी भी गाय ,
और ,
गाय भी बकरी बन जाती है ,
सोच - समझ कर
मुँह खोलना ,
सोच - समझ कर
कदम बढ़ाना ,
कदम - कदम पर ज़ाल बिछे हैं ,
ज़ाल में झूठ के तम्बू हैं ,
जहाँ , सच नहीं , झूठ चलता है
झूठ के साये में सच चलता है ,
सच पर झूठ का पहरा रहता है।
ईमान को काँख में
दबा कर चलना ,
झूठ को आँखों में
बसा कर चलना ,
सिर पर धूप बहुत है ,
संभल कर चलना  ,
सिर अपना बचा कर चलना।

सड़क पर निकलो तो ,
निग़ाह रख कर चलना ,
कहाँ - कहाँ नहीं हैं भेड़िये
तुम्हारा शिकार करने ,
हवा ज़हरीली है
हर जगह , हर दिशा ,
रात तो काली होती ही है ,
यहाँ सफ़ेद  झक्क लिबास में भी
दिल काला मिलता है ,
अपना सत बचा कर चलना ,
आँचल सँभाल कर चलना ,
सूरज भी मूँद लेता है आँखें ,
अब सच कौन बोलता है
और ,
अगर , कोई बोले भी तो
उसे कौन सच मानता है ?
सच की लकीरों पर
झूठ का मुलम्मा है ,
झूठ के साये में सच चलता है ,
सच पर झूठ का पहरा रहता है ,
सर पर  धूप बहुत है ,
सँभल कर चलना ,
सिर अपना बचा कर चलना


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