काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Wednesday, February 17, 2016
कागजी आदमी
खो गई है पहचान
आज के आदमी की ,
ढूढ़ रहा है
अपना आधार ,
बिना ' आधार '
नहीं है उसका वज़ूद ,
गो कि ,
वह जिन्दा है ,
पर कागजों में नहीं है ,
नहीं है उसका अस्तित्व ,
आदमी ' कागजी ' हो गया है।
------- ( प्रकाशित )
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