प्रीत के सागर में प्रिय तुम,
भावना का रंग दो,
इस सिंदूरी शाम का ,
यौवन महक तो जाएगा |
हरसिंगारी गंध को ,
उन्मुक्त बहने दो ज़रा ,
एक अल्हढ़ सा पवन का
मन मचल तो जाएगा |
थप -थापाती है उषा के
द्वार जब अरुणिम किरण ,
तब किसी नव कोकिला को
स्वर नया मिल जाएगा |
रूपसी के चितवनों के
वाण चलने दो ज़रा ,
इस धरा पर स्वर्ग का
सौन्दर्य तो बिछ जाएगा |
bahut badhiya!
ReplyDeletethank you.
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