Tuesday, January 17, 2012

प्रीत के सागर में प्रिय तुम


प्रीत के सागर में प्रिय  तुम,
भावना  का रंग दो,
इस सिंदूरी शाम का ,
यौवन महक तो जाएगा |

हरसिंगारी  गंध को ,
उन्मुक्त बहने दो ज़रा ,
एक अल्हढ़ सा पवन का
मन मचल तो जाएगा |

थप -थापाती है उषा के
द्वार जब अरुणिम किरण ,
तब किसी नव कोकिला को
स्वर नया मिल जाएगा |

रूपसी के चितवनों के
वाण चलने दो ज़रा ,
इस धरा पर स्वर्ग का
सौन्दर्य तो बिछ जाएगा |

2 comments: