Friday, June 20, 2014

दीप-शिखा

 ( प्रस्तुत कविता श्री जसजीत सिंह , वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक ,उत्तर रेलवे ,मुरादाबाद के दिनांक 14 -07 -1988 को ,देहरादून स्टेशन पर प्रथम आगमन के अवसर पर स्वागत -सम्मान समारोह में मैंने पढ़ कर सुनाया तथा इसकी एक प्रति उन्हें भेंट किया )




तुम तरुवर ,हम भटके राही ,
तुम सरवर ,हम प्यासे राही  ,
तुम ज्योतिर्मय दीप-शिखा हो ,
आशा की किरणों को लेकर ,
जगमग-जगमग दीप जलाओ ,
दिशाहीन भटके राही को ,
आशा की एक राह दिखाओ ,
और ,
निराशा के सागर में ,
उतराते जो ,
कर गह कर ,
तुम उन्हें उबारो।
तुम हो एक कुसुम इस तट के ,
हम पंछी इस सागर तट के ,
कुसुम गंध को फैलाओ तुम ,
कुसुम गंध को फैलाएं हम ,
आओ मिल कर मोद मनायें ,
आओ गीत मिलन के गायें ,
जीवन को खुशियों से भर दें ,
जीवन को महकाते जायें।

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