यह बात कितनी सच है-
जो पैरों पर गिरता है
उसे ठोकर मार दिया जाता है ,
जैसे -धूल और राह का पत्थर ....
यही बात इन्सानों के साथ भी है ,
फर्क केवल इतना है, कि
धूल या पत्थर टूटते नहीं ,
इंसान यानी आदमी टूट जाता है ....
यह बात भी कितनी सच है, कि
सितारों के टूटने की आवाज नहीं होती है ,
ठीक उसी तरह ,
आदमी के भी टूटने की आवाज नहीं होती है ,
पर आदमी टूट जाता है ,
जिन्दा रह कर भी ,
जिन्दा लाश बन कर रह जाता है... ..
आदमी होकर ,
आदमी को ठोकर तो मत लगाओ ,
इन्हें पत्थर नहीं ,आदमी बनाओ।
माना , तुम देवता नहीं बन सकते हो ,
रहनुमा तो बन सकते हो !
और ,
आदमी को आदमी तो बना सकते हो !
कौन जाने ,कौन कितना थका -हारा है ?
और ,
चुपचाप लब सिले बैठा है ?
उसकी "थकन "और "हार "का
अंदाजा तो लगाओ ,
"सच "को जो जान पाओगे
"प्यार " का अहसास ,और
"भलाई " का मंत्र ,
तुम्हें " देवता " बना देगा …
( यह कविता देहरादून स्टेशन पर श्री राम प्यारे ,वरिष्ठ मंडल प्रबंधक ,उत्तर रेलवे के विदाई समारोह के आयोजन पर श्री जसजीत सिंह , वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक ,उत्तर रेलवे ,मुरादाबाद के दिनांक 14 -07 -88 को ,उनके प्रथम आगमन पर मैंने भेंट किया )
जो पैरों पर गिरता है
उसे ठोकर मार दिया जाता है ,
जैसे -धूल और राह का पत्थर ....
यही बात इन्सानों के साथ भी है ,
फर्क केवल इतना है, कि
धूल या पत्थर टूटते नहीं ,
इंसान यानी आदमी टूट जाता है ....
यह बात भी कितनी सच है, कि
सितारों के टूटने की आवाज नहीं होती है ,
ठीक उसी तरह ,
आदमी के भी टूटने की आवाज नहीं होती है ,
पर आदमी टूट जाता है ,
जिन्दा रह कर भी ,
जिन्दा लाश बन कर रह जाता है... ..
आदमी होकर ,
आदमी को ठोकर तो मत लगाओ ,
इन्हें पत्थर नहीं ,आदमी बनाओ।
माना , तुम देवता नहीं बन सकते हो ,
रहनुमा तो बन सकते हो !
और ,
आदमी को आदमी तो बना सकते हो !
कौन जाने ,कौन कितना थका -हारा है ?
और ,
चुपचाप लब सिले बैठा है ?
उसकी "थकन "और "हार "का
अंदाजा तो लगाओ ,
"सच "को जो जान पाओगे
"प्यार " का अहसास ,और
"भलाई " का मंत्र ,
तुम्हें " देवता " बना देगा …
( यह कविता देहरादून स्टेशन पर श्री राम प्यारे ,वरिष्ठ मंडल प्रबंधक ,उत्तर रेलवे के विदाई समारोह के आयोजन पर श्री जसजीत सिंह , वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक ,उत्तर रेलवे ,मुरादाबाद के दिनांक 14 -07 -88 को ,उनके प्रथम आगमन पर मैंने भेंट किया )
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