कलियाँ चटकीं कचनार खिले ,
गुलमोहर के मुख लाल हुए ,
चहकीं चिड़ियाँ बहका पवन
मदमस्त हुआ तन-मन योवन ।
चहकीं चिड़ियाँ बहका पवन
मदमस्त हुआ तन-मन योवन ।
फूलीं सरसों महका बयार ,
हो रहा धरा का नव श्रृंगार ,
उन्मद समीर गाता मल्हार ,
चल नाविक तू चल मझधार ।
नदियों की चंचल लहर -लोल ,
प्रमुदित हो करती हैं किलोल ,
कुंजों में कोकिल का सरगम ,
है पात -पात बिखरा शबनम ,
सुन कर भौरों का गुन-गुन -गुन ,
फूलों पर छाया है फागुन ,
इतरा -इतरा कर शाखों पर ,
कर रहे भ्रमर का आलिंगन ।
सूरज की रक्तिम किरणों से ,
सरसिज सरवर का महक उठा ,
गिरी भी बुरांस के फूलों से ,
दावानल जैसा दहक उठा ।
अनुपम है यह रूप धरा का ,
अंग -अंग है निखर रहा ,
कामदेव के पुष्पवान से ,
संयम मन का बिखर रहा
मधु -ऋतु के अंगड़ाई से ,
भींग रहा है अंतरतम ,
आया वसंत का मधु -मौसम ,
आया वसंत का मधु -मौसम ।
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