निज करतल में मैं प्रकृति का श्रृंगार लिए चलता हूँ ,
मैं अपने उर में जीवन का उद्गार लिए चलता हूँ ।
मैं पथिक अकेला अपनी राह का, मस्ती में चलता हूँ ,
मैं अरमानों और भावों का उपहार लिए चलता हूँ ।
तूफ़ानों - झंझावातों को मुट्ठी बाँध लिए चलता हूँ ,
सुख - दुःख के दोनों तीरों को अपने साथ लिए चलता हूँ ।
निविड़ अंधकार में भी , पथ , आलोकित कर के चलता हूँ ,
साहस के बल, हर मुश्किल ,हँस कर पार किये चलता हूँ ।
नहीं संग कोई संगी साथी ,मन को साथ लिए चलता हूँ ,
मैं मौजों में भी हिम्मत का पतवार लिए चलता हूँ ।
मिले राह में काँटे भी , मैं , उनको प्यार किये चलता हूँ ,
कुछ गीत लिखे अपने मन की , वह गीत गाये चलता हूँ ।
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