हो गई शापित धरा , परित्राण होना चाहिए ,
इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए।
रुष्ट शिव की ही कृपा फिर इस धरा पर चाहिए।
हर त्रषित जन -जन का अब कल्याण होना चाहिए।
पाप क्या है ,पुण्य क्या है ,मैं नहीं कुछ जानता ,
वक्त के हाथों रहा हूँ, जिन्दगी भर नाचता।
वक्त के हाथों रहा हूँ, जिन्दगी भर नाचता।
जो सदा से ही रहा है , प्यार सबको बाँटता ,
आज फिर इस भोले शिव का, प्यार सबको चाहिए।
इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए।
हो गईं नदियाँ अपावन , भक्ष कर अभक्ष्य का ,
पतित-पावनी एक सलिला, हम को फिर से चाहिए।
हो गईं नदियाँ अपावन , भक्ष कर अभक्ष्य का ,
पतित-पावनी एक सलिला, हम को फिर से चाहिए।
अवतरित कर ला सके ,शिव की जटा से गंग जो ,
ऐसे भागीरथ का ,फिर ,अवतार होना चाहिए।
ऐसे भागीरथ का ,फिर ,अवतार होना चाहिए।
त्राण सबका कर सके जो ,त्रास सबका हर सके ,
मोक्ष सबको दे सके जो , गंगा जल वो चाहिए।
कर सकूँ जो वक्त को ,वश में, वो शक्ति चाहिए ,
हे जटाधर मुझको तो, वरदान ऐसा चाहिए।
हे जटाधर मुझको तो, वरदान ऐसा चाहिए।
इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए।
--- ( प्रकाशित )
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