चीर रहा सन्नाटे को है ,सागर का गर्जन ,
भेद तिमिर को रवि क्यों करता आज रुदन - क्रन्दन ,
हुई रश्मियाँ मंद , आज , ना हुआ कोई भी वंदन ।
हा ! कैसा अन्याय शत्रु का भारत की धरती पर ,
करके कलम शीश , लाल का , क्षत - विक्षत कर तन को ,
दे रहा चुनौती वर्षों से , वह , भारत के जन - जन को ।
जिसके लाखों सैनिक ने थे , घुटने टेक दिये ,
वही भीरू - कायर फिर से , है आँखें दिखा रहा ,
गीदर को देखो , बिल्ली की बोली बोल रहा ।
पर भारत के भाग्य - विधाता , अपने में खोये हैं ,
जाने किन सपनों को ले , आँख मींच सोये हैं ,
मैं - मैं , तू - तू , तू - तू , मैं -मैं , इनमें ही उलझे हैं ।
आज ह्रदय में जन - जन के , जलती बदले की ज्वाला ,
मौन हुई है हवा , हुई स्तब्ध दसों दिशाएँ ,
नेता की आँखों का पानी , सूख गए हैं लाला ।
होती गर परवा इनको , तो , काश्मीर क्यों जलता ,
क्यों कर राष्ट्र तिरंगे का , अपमान यहाँ पर होता ,
क्यूँ सड़कों पर काश्मीर के , राष्ट्र तिरंगा जलता ?
कभी राम मन्दिर में उलझे , कभी कृष्ण मन्दिर में ,
गंगा की पावन धारा में , हाथ अपने धो आये ,
पर अपने मन - मन्दिर को , वे साफ़ नहीं कर पाए ।
गर ऐसा होता तो , क्यों , क्रूरता परोसी जाती ,
गौ रक्षा व धर्म नाम पर , हत्याएँ क्यों होती ,
क्यों केसर की क्यारी में , बारूद उगाई जाती ?
क्यूँ सरहद पर रोज - रोज , सैनिक शहीद हैं होते ,
माँ का लाल , बहन का भाई , रोज बिछड़ क्यों जाते
क्यूँ सीमा पर प्रहरी के , सिर को काटे जाते ?
कब तक होगी पत्थरबाजी ,
कब तक होंगे नारे ,
धर्म - प्यार की बात न सुनते ,मानवता के हत्यारे।
लफ़्जों को छोड़ो , करो अब बारूदों से बातें ,
उनको तो अब उनकी ही , भाषा में समझायें ,
अरे ! करो आदेश कूच का ,कहर शत्रु पर ढायें ।
हो चाहे बलिदान हमारा , आगे बढ़ते जाएँ ,
भारत माँ की चरणों में ,शत्रु के शीश चढ़ायें ,
आन तिरंगे की रखनी है , चाहे जान ये जाए
नभ के कोने - कोने में , हम राष्ट्र - ध्वजा फहराएं ।
भेद तिमिर को रवि क्यों करता आज रुदन - क्रन्दन ,
हुई रश्मियाँ मंद , आज , ना हुआ कोई भी वंदन ।
हा ! कैसा अन्याय शत्रु का भारत की धरती पर ,
करके कलम शीश , लाल का , क्षत - विक्षत कर तन को ,
दे रहा चुनौती वर्षों से , वह , भारत के जन - जन को ।
जिसके लाखों सैनिक ने थे , घुटने टेक दिये ,
वही भीरू - कायर फिर से , है आँखें दिखा रहा ,
गीदर को देखो , बिल्ली की बोली बोल रहा ।
पर भारत के भाग्य - विधाता , अपने में खोये हैं ,
जाने किन सपनों को ले , आँख मींच सोये हैं ,
मैं - मैं , तू - तू , तू - तू , मैं -मैं , इनमें ही उलझे हैं ।
आज ह्रदय में जन - जन के , जलती बदले की ज्वाला ,
मौन हुई है हवा , हुई स्तब्ध दसों दिशाएँ ,
नेता की आँखों का पानी , सूख गए हैं लाला ।
होती गर परवा इनको , तो , काश्मीर क्यों जलता ,
क्यों कर राष्ट्र तिरंगे का , अपमान यहाँ पर होता ,
क्यूँ सड़कों पर काश्मीर के , राष्ट्र तिरंगा जलता ?
कभी राम मन्दिर में उलझे , कभी कृष्ण मन्दिर में ,
गंगा की पावन धारा में , हाथ अपने धो आये ,
पर अपने मन - मन्दिर को , वे साफ़ नहीं कर पाए ।
गर ऐसा होता तो , क्यों , क्रूरता परोसी जाती ,
गौ रक्षा व धर्म नाम पर , हत्याएँ क्यों होती ,
क्यों केसर की क्यारी में , बारूद उगाई जाती ?
क्यूँ सरहद पर रोज - रोज , सैनिक शहीद हैं होते ,
माँ का लाल , बहन का भाई , रोज बिछड़ क्यों जाते
क्यूँ सीमा पर प्रहरी के , सिर को काटे जाते ?
कब तक होगी पत्थरबाजी ,
कब तक होंगे नारे ,
धर्म - प्यार की बात न सुनते ,मानवता के हत्यारे।
लफ़्जों को छोड़ो , करो अब बारूदों से बातें ,
उनको तो अब उनकी ही , भाषा में समझायें ,
अरे ! करो आदेश कूच का ,कहर शत्रु पर ढायें ।
हो चाहे बलिदान हमारा , आगे बढ़ते जाएँ ,
भारत माँ की चरणों में ,शत्रु के शीश चढ़ायें ,
आन तिरंगे की रखनी है , चाहे जान ये जाए
नभ के कोने - कोने में , हम राष्ट्र - ध्वजा फहराएं ।
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