बेटी ने पापा से पूछा ,
मुझको यह बतलाओ पापा
पर धन बेटी है कहलाती ,
छोड़ मायके पिऊ घर आती ,
मिलता प्यार बहुत है पिऊ घर ,
फिर भी, पर जाया कहलाती ।
दोनों घर के बीच डोलती ,
जीवन है उसका खो जाता ,
ऐसे में बतलाओ पापा ,
बेटी का घर कौन सा होता ?
बेटी का यह प्रश्न जटिल था ,
मानो जैसे यही गरल था ,
इस विष को तो पीना ही था ,
बेटी को बतलाना ही था।
हो गंभीर पिता यूँ बोले ,
थोड़ा सा मन से वे डोले ,
पापा की आँखों का तारा ,
दिल का टुकड़ा होती बेटी ,
अपनी माँ की बहुत चहेती ,
माँ के दिल में रहती बेटी।
घर ना होता कोई बेटी ,
घर तो हमें बनाना पड़ता ,
मुझको यह बतलाओ पापा
पर धन बेटी है कहलाती ,
छोड़ मायके पिऊ घर आती ,
मिलता प्यार बहुत है पिऊ घर ,
फिर भी, पर जाया कहलाती ।
दोनों घर के बीच डोलती ,
जीवन है उसका खो जाता ,
ऐसे में बतलाओ पापा ,
बेटी का घर कौन सा होता ?
बेटी का यह प्रश्न जटिल था ,
मानो जैसे यही गरल था ,
इस विष को तो पीना ही था ,
बेटी को बतलाना ही था।
हो गंभीर पिता यूँ बोले ,
थोड़ा सा मन से वे डोले ,
पापा की आँखों का तारा ,
दिल का टुकड़ा होती बेटी ,
अपनी माँ की बहुत चहेती ,
माँ के दिल में रहती बेटी।
घर ना होता कोई बेटी ,
घर तो हमें बनाना पड़ता ,
प्यार , त्याग , विश्वास , समर्पण,
सौम्य ,शील ,सौहाद्र आचरण ,
सम्मानित होते जँह गुरुजन ,
जिस घर में होता है बेटी ,
रहते देव, फ़रिश्ते जिस घर ,
वह घर मंदिर सा बन जाता ,
जो घर मंदिर सा बन जाता ,
बस वह मंदिर घर कहलाता।
जो घर मंदिर सा बन जाता ,
बस वह मंदिर घर कहलाता।
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