रोटी तो बस दो खाते हैं ,
पानी भी थोड़ा पीते हैं ,
रोटी मुझको नहीं चाहिये ,
मुझको तो बस प्यार चाहिये ,
वापस तू अब घर को आ जा ,
आधी ही है मेरी पूजा ,
पूजा पूरी करने आ जा ,
ओ परदेशी ,घर तू आ जा।
बाट तिहारा जोह रहा हूँ ,
हर क्षण , हर पल विकल रहा हूँ ,
अँखियों में भी नीर नहीं है ,
मन को भी अब धीर नहीं है ,
मेरे दिल के अरमां आ जा ,
नयनों का तारा तू आ जा ,
कुछ सम्बल मुझको तू दे जा ,
ओ परदेशी घर तू आ जा।
( रचना तिथि 30 मार्च -2015 )
पानी भी थोड़ा पीते हैं ,
रोटी मुझको नहीं चाहिये ,
मुझको तो बस प्यार चाहिये ,
वापस तू अब घर को आ जा ,
आधी ही है मेरी पूजा ,
पूजा पूरी करने आ जा ,
ओ परदेशी ,घर तू आ जा।
बाट तिहारा जोह रहा हूँ ,
हर क्षण , हर पल विकल रहा हूँ ,
अँखियों में भी नीर नहीं है ,
मन को भी अब धीर नहीं है ,
मेरे दिल के अरमां आ जा ,
नयनों का तारा तू आ जा ,
कुछ सम्बल मुझको तू दे जा ,
ओ परदेशी घर तू आ जा।
( रचना तिथि 30 मार्च -2015 )
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