तेरा वज़ूद क्या है , मेरा वजूद क्या है ,
ये ज़िन्दगी फना है , इस ज़िन्दगी का क्या है ।
दुनिया बाज़ारे मीना , दुनिया में और क्या है ,
इक रंजो - गम का दरिया , दरिया में मौज क्या है ।
वो मज़हबों को लेकर , तमाशा दिखा रहे हैं ,
रिश्ते इन मजहबों से , इन्सां का सच में क्या है ।
झगड़े सियासतों के , गलियों में हो रहे हैं ,
वो कत्ले आम कर के , हरमों में सो रहे हैं ।
हर ओर वहशियाना , ज़श्ने क़त्ल हो रहे हैं ,
हिन्दू मरा या मुस्लिम , इन्सां ही मर रहे हैं ।
तन पर कफ़न लपेटे , हर लाश पूछती है ,
ओ धर्म के मसीहा , अब जात मेरी क्या है ।
( वर्ष 2006 , फरवरी में रचित )
ये ज़िन्दगी फना है , इस ज़िन्दगी का क्या है ।
दुनिया बाज़ारे मीना , दुनिया में और क्या है ,
इक रंजो - गम का दरिया , दरिया में मौज क्या है ।
वो मज़हबों को लेकर , तमाशा दिखा रहे हैं ,
रिश्ते इन मजहबों से , इन्सां का सच में क्या है ।
झगड़े सियासतों के , गलियों में हो रहे हैं ,
वो कत्ले आम कर के , हरमों में सो रहे हैं ।
हर ओर वहशियाना , ज़श्ने क़त्ल हो रहे हैं ,
हिन्दू मरा या मुस्लिम , इन्सां ही मर रहे हैं ।
तन पर कफ़न लपेटे , हर लाश पूछती है ,
ओ धर्म के मसीहा , अब जात मेरी क्या है ।
( वर्ष 2006 , फरवरी में रचित )