यह रात अमावस काली है ,
इस दिन ही तो दीवाली है ,
दीपों के मेले लगते हैं ,
हर घर दीपों से सजते हैं ।
लक्ष्मी की पूजन होती है ,
देवी की पूजन होती है ,
देवों की पूजन होती है ।
कहते कुछ लोग कहानी हैं ,
इस पुण्य देश की धरती पर ,
चहुँ ओर अधर्म ही छाया था ,
रावण का दुराज छाया था ।
तब राम - लखन के सायक ने ,
जय धर्म - ध्वजा फहराई थी ,
लोगों ने ख़ुशी मनाई थी ,
इस दिन दीवाली आई थी ।
वह हो अमीर या हो गरीब ,
हर घर दीवाली मनती है ,
मन खुशियों से भर जाता है ,
उल्लास आज छा जाता है ।
कहीं बिजली की लडियां जलतीं ,
कहीं दीपों की जगमग माला ,
रंग बिरंगी फुलझरियां है ,
सजे आज घर - आँगन आला ।
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