अलबेला सावन का मौसम ,
सबके लिए सुहाना मौसम ,
झूम - झूम कर बदरा आये ,
घन - घन , घन - घन घन लहराए ।
बरसा सावन रिम - झिम , रिम - झिम ,
ता धिन , धिन - धिन , ता धिन , धिन - धिन
पंखुड़ियों पर थिर कर बूँदें ,
बन जाती हैं मोती अनगिन ।
नभ से बादल जल बरसाते ,
नदियाँ औ नाले भर जाते ,
छोटे , छोटे गड़हे भी तब ,
जल से भर कर सर बन जाते ।
बारिस में भर जाती नदियाँ ,
उफन - उफन कर चलती नदियाँ ,
लहर - लहर कर चलती नदियाँ ,
छल - छल , छल - छल चलती नदियाँ ।
घहराती , हहराती जाती ,
बड़े वेग से चलती जाती ,
राहों के बाधाओं को भी
अपने संग बहा ले जाती ।
आँगन में भर देख के पानी ,
बच्चों का है मन ललचाया ,
कित्ता पानी , कित्ता पानी ,
ता - ता थैया , ता - ता थैया ।
मिल कर हम सब नाचें गायें ,
आओ मिल कर रेल चलायें ,
चल कागद का नाव बनायें ,
पानी में उसको तैरायें ।
चल पानी में उछलें कूदें ,
पानी में कुछ मोद मनायें ,
छप , छपा - छप , छप - छप छैया ,
हो , हो हैया , हो , हो , हैया ।
तिथि :-07 -11 - 2012
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