वीर प्रहरी
मात् भूमि के सजग प्रहरी ! बढ़ो , न पीछे हट जाना ,
पाप पैर दुश्मन ने रखा , उसको सबक सिखा देना ।
अमित धैर्य औ साहस भर , रिपु- दल पर तुम चढ़ते जाना ,
विजय का झंडा ओ प्रहरी , है रन में भी फहराना ।
मात् भूमि के सजग प्रहरी ! तुम आगे बढ़ते जाना ,
देख अकेले अपने को तुम , नहीं तनिक भी घबराना ।
हम कोटि - कोटि जन तेरे पीछे , हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख, ईसाई , ,
आ रहे झूमते , हँसते - गाते , मस्ती में " विजय " तराना ।
( वर्ष 1965 में लिखित एवं प्रकाशित )
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