काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Sunday, August 5, 2012
बिल्ली मौसी
बिल्ली मौसी बोली म्यायुं ,
मन करता है काशी जाऊं ,
मथुरा से दर्शन कर आऊं ,
गोप - गोपियों के घर जाऊं ,
दूध , मलाई - मक्खन पाऊं ,
चुपके - चुपके चट कर जाऊं ,
बिल्ला बिगड़ा - बोला म्याऊं ,
बड़ी भूख है , मैं क्या खाऊँ ?
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