कलम छोड़ तलवार उठाओ ,
अर्जुन का गांडीव जगाओ ,
छोड़ कृष्ण की मधुर बाँसुरी ,
कृष्णचन्द्र का शंख बजाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
अश्रु से पूरित नयनों से ,
मत मन को कमजोर बनाओ ,
यहाँ सभी धृतराष्ट्र बने हैं ,
मोह न इनका मन में लाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
कोई लूट रहा है देश को ,
कोई तोड़ रहा है देश को ,
नादिरशाह और जयचंदों के ,
वंसज को तुम मार गिराओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
राजनीति के फनकारों के ,
विषधर जैसे फन हैं फैले ,
जनता को हैं दंश दे रहे ,
इनके फन को काट गिराओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
क्लांत पड़े जो इस धरती पर ,
उनमें कुछ आवेग जगाओ ,
सोई हुई भुजाएं जिनकी ,
उनमें कुछ शोले भड़काओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
जिस मिट्टी में पले - बढे हम ,
वह मिट्टी अनमोल धरोहर ,
इस मिट्टी की इक पुकार पर ,
न्योछावर जीवन कर जाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
अर्जुन का गांडीव जगाओ ,
छोड़ कृष्ण की मधुर बाँसुरी ,
कृष्णचन्द्र का शंख बजाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
अश्रु से पूरित नयनों से ,
मत मन को कमजोर बनाओ ,
यहाँ सभी धृतराष्ट्र बने हैं ,
मोह न इनका मन में लाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
कोई लूट रहा है देश को ,
कोई तोड़ रहा है देश को ,
नादिरशाह और जयचंदों के ,
वंसज को तुम मार गिराओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
राजनीति के फनकारों के ,
विषधर जैसे फन हैं फैले ,
जनता को हैं दंश दे रहे ,
इनके फन को काट गिराओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
क्लांत पड़े जो इस धरती पर ,
उनमें कुछ आवेग जगाओ ,
सोई हुई भुजाएं जिनकी ,
उनमें कुछ शोले भड़काओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
जिस मिट्टी में पले - बढे हम ,
वह मिट्टी अनमोल धरोहर ,
इस मिट्टी की इक पुकार पर ,
न्योछावर जीवन कर जाओ ,
कलम छोड़ तलवार उठाओ ।
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