Sunday, August 5, 2012

कलम छोड़ तलवार उठाओ

कलम   छोड़   तलवार   उठाओ ,
अर्जुन   का    गांडीव    जगाओ ,
छोड़  कृष्ण   की मधुर   बाँसुरी ,
कृष्णचन्द्र  का  शंख   बजाओ ,
कलम   छोड़  तलवार   उठाओ ।

अश्रु   से    पूरित    नयनों    से  ,
मत मन  को  कमजोर  बनाओ  ,
यहाँ  सभी   धृतराष्ट्र   बने   हैं ,
मोह  न  इनका   मन  में  लाओ  ,
कलम  छोड़   तलवार   उठाओ  ।

कोई   लूट   रहा   है   देश    को  ,
कोई    तोड़  रहा है    देश    को  ,
नादिरशाह   और  जयचंदों   के  ,
वंसज  को  तुम   मार  गिराओ  ,
कलम  छोड़   तलवार  उठाओ  ।

राजनीति   के   फनकारों    के  ,
विषधर   जैसे   फन  हैं    फैले  ,
जनता  को   हैं   दंश   दे    रहे  ,
इनके  फन को काट   गिराओ  ,
कलम  छोड़  तलवार  उठाओ  ।

क्लांत पड़े  जो  इस  धरती पर  ,
उनमें   कुछ   आवेग   जगाओ  ,
सोई    हुई    भुजाएं    जिनकी  ,
उनमें   कुछ   शोले   भड़काओ  ,
कलम   छोड़  तलवार  उठाओ  ।

जिस  मिट्टी  में  पले  - बढे   हम  ,
वह    मिट्टी   अनमोल    धरोहर  ,
इस  मिट्टी   की  इक  पुकार  पर  ,
न्योछावर   जीवन   कर   जाओ  ,
कलम   छोड़    तलवार  उठाओ  ।

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