दिल के ज़ख्मों को
हम क्या गिनायें ,
एक हो तो कुछ बतायें ,
अपनों और गैरों ने ही नहीं ,
हवाओं ने भी
कुछ कम ज़ुल्म नहीं ढाये।
समन्दर चीखता रहा ,
लोग आनन्द उठाते रहे ,
किसी की चीख भी ,
किसी के लिये
आनन्द का पर्याय बन जाये !
इस दुनिया के भी
अजब तमाशे हैं ,
गिद्धों ने ययह बात , हमें
तरीके से समझाये .....
-विजय कुमार सिन्हा " तरुण "
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