Monday, March 12, 2018

अपनों से मिलने को

अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है  ,
कितना आकुल , कितना व्याकुल दिल यह होता है।

सर - सर चलती हवा पहुँचती , कभी फूल के पास ,
कभी चूमती है पर्वत को और कभी आकाश।

चीड़ - चिनार  व देवदार भी उसे बुलाता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।

नहीं समय की पाबंदी है , ना कोई बंधन ,
जब मन  करता , उड़ चलता , फिरता नंदन - कानन।

आज मनुज की बातों में अपनापन खोता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।

हम भी हवा सा बन जायें  और चूमे नित आकाश ,
हो ऐसा दिल सबका , जिसमें प्यार बरसता है।



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