अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है ,
कितना आकुल , कितना व्याकुल दिल यह होता है।
सर - सर चलती हवा पहुँचती , कभी फूल के पास ,
कभी चूमती है पर्वत को और कभी आकाश।
चीड़ - चिनार व देवदार भी उसे बुलाता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।
नहीं समय की पाबंदी है , ना कोई बंधन ,
जब मन करता , उड़ चलता , फिरता नंदन - कानन।
आज मनुज की बातों में अपनापन खोता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।
हम भी हवा सा बन जायें और चूमे नित आकाश ,
हो ऐसा दिल सबका , जिसमें प्यार बरसता है।
कितना आकुल , कितना व्याकुल दिल यह होता है।
सर - सर चलती हवा पहुँचती , कभी फूल के पास ,
कभी चूमती है पर्वत को और कभी आकाश।
चीड़ - चिनार व देवदार भी उसे बुलाता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।
नहीं समय की पाबंदी है , ना कोई बंधन ,
जब मन करता , उड़ चलता , फिरता नंदन - कानन।
आज मनुज की बातों में अपनापन खोता है ,
अपनों से मिलने को जब इस दिल को होता है।
हम भी हवा सा बन जायें और चूमे नित आकाश ,
हो ऐसा दिल सबका , जिसमें प्यार बरसता है।
No comments:
Post a Comment