जब से सावन उमड़ के आया है ,
रूप धरती का है सँवरने लगा ,
हर तरफ छा रही है हरियाली ,
जैसे बादल से अप्सरा आई।
साल सोलहवाँ जो लगा आकर ,
रंग गोरी का है निखरने लगा ,
जैसे सावन के चाँदनी की हँसी ,
तन-वदन गोरी का है हँसने लगा।
रूपसी भी हैं अब लगी सजने ,
हाथ में मेंहदियाँ लगी रचने ,
लग गए डालियों पे झूले हैं ,
कृष्ण की बाँसुरी लगी बजने।
मोर भी हैं नाचने लगे वन में
जब से काली घटाएँ छाईं हैं ,
बज उठी घंटियाँ हैं मन्दिर में ,
भोले बाबा की याद आई है ।
रूप धरती का है सँवरने लगा ,
हर तरफ छा रही है हरियाली ,
जैसे बादल से अप्सरा आई।
साल सोलहवाँ जो लगा आकर ,
रंग गोरी का है निखरने लगा ,
जैसे सावन के चाँदनी की हँसी ,
तन-वदन गोरी का है हँसने लगा।
रूपसी भी हैं अब लगी सजने ,
हाथ में मेंहदियाँ लगी रचने ,
लग गए डालियों पे झूले हैं ,
कृष्ण की बाँसुरी लगी बजने।
मोर भी हैं नाचने लगे वन में
जब से काली घटाएँ छाईं हैं ,
बज उठी घंटियाँ हैं मन्दिर में ,
भोले बाबा की याद आई है ।
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