सुनो ऐ हिन्द के लोगों कहानी हम सुनाते हैं ,
शहीदों की व्यथाओं की कथा तुमको सुनाते हैं।
दिए सर्वस्व थे जिसने , बढ़ाया मान हमसब का ,
उसी की आत्मा की ये व्यथा तुमको सुनाते हैं।
हमारी भूमि पर आकर , सिर को काट ले जाते ,
मगर हम हैं सियासत में अमन की संधि कर आते ,
न कुछ भी दर्द ही होता , न कुछ भी क्षोभ ही होते ,
अमन के शत्रु के घर बैठ दावत खूब कर आते ,
किये बलिदान जीवन के , थे हमने देश की खातिर ,
कभी पैंसठ - इकहत्तर और करगिल याद हैं आते।
मगर ये जो सियासत है...
कटा कर शीष को हमने , किया माँ - कोख को सूना ,
निछावर भी किया था माँग के सिन्दूर पत्नी का ,
बहन मेरी बहुत रोई , मेरा बेटा बहुत रोया ,
पिता को बेसहारा करके मैं धरती में जा सोया ,
मगर जब देखता हूँ मैं अपने देश की हालत ,
हमारा दिल बहुत रोता है , आँसू आँख में आते।
मगर ये जो सियासत है .....
कभी कश्मीर है जलता , कभी बंगलोर जलता है ,
कभी दिल्ली सुलगती है , कभी आंध्रा सिसकता है ,
महज कुर्सी की ही खातिर , ये जनता को लड़ाते हैं ,
हमें तुमसे लड़ाते हैं , तुम्हें हमसे लड़ाते हैं ,
कभी मंदिर जलाते हैं , कभी मस्जिद जलाते हैं ,
कभी बस्ती जलाते हैं , कभी दंगा कराते हैं
मगर ये जो सियासत हो ........
तिरंगा तीन रंगों का , शहीदों की निशानी है ,
नहीं दुनियाँ में दूजा कोई इसका और सानी है ,
तिरंगे के लिए जीना , तिरंगे के लिए मरना ,
तिरंगे के लिए हमको जनम सौ बेर है लेना ,
तिरंगा है वसन मेरा , तिरंगा हो कफ़न मेरा ,
तिरंगे के लिए हम तो ये जां कुर्बान कर जाते।
मगर ये जो सियासत है .......
शहीदों की व्यथाओं की कथा तुमको सुनाते हैं।
दिए सर्वस्व थे जिसने , बढ़ाया मान हमसब का ,
उसी की आत्मा की ये व्यथा तुमको सुनाते हैं।
हमारी भूमि पर आकर , सिर को काट ले जाते ,
मगर हम हैं सियासत में अमन की संधि कर आते ,
न कुछ भी दर्द ही होता , न कुछ भी क्षोभ ही होते ,
अमन के शत्रु के घर बैठ दावत खूब कर आते ,
किये बलिदान जीवन के , थे हमने देश की खातिर ,
कभी पैंसठ - इकहत्तर और करगिल याद हैं आते।
मगर ये जो सियासत है...
कटा कर शीष को हमने , किया माँ - कोख को सूना ,
निछावर भी किया था माँग के सिन्दूर पत्नी का ,
बहन मेरी बहुत रोई , मेरा बेटा बहुत रोया ,
पिता को बेसहारा करके मैं धरती में जा सोया ,
मगर जब देखता हूँ मैं अपने देश की हालत ,
हमारा दिल बहुत रोता है , आँसू आँख में आते।
मगर ये जो सियासत है .....
कभी कश्मीर है जलता , कभी बंगलोर जलता है ,
कभी दिल्ली सुलगती है , कभी आंध्रा सिसकता है ,
महज कुर्सी की ही खातिर , ये जनता को लड़ाते हैं ,
हमें तुमसे लड़ाते हैं , तुम्हें हमसे लड़ाते हैं ,
कभी मंदिर जलाते हैं , कभी मस्जिद जलाते हैं ,
कभी बस्ती जलाते हैं , कभी दंगा कराते हैं
मगर ये जो सियासत हो ........
तिरंगा तीन रंगों का , शहीदों की निशानी है ,
नहीं दुनियाँ में दूजा कोई इसका और सानी है ,
तिरंगे के लिए जीना , तिरंगे के लिए मरना ,
तिरंगे के लिए हमको जनम सौ बेर है लेना ,
तिरंगा है वसन मेरा , तिरंगा हो कफ़न मेरा ,
तिरंगे के लिए हम तो ये जां कुर्बान कर जाते।
मगर ये जो सियासत है .......
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