Sunday, January 10, 2016

विडंबना

         
बच्चों को खिलौनों में देते हैं
बंदूक ,तीर और कमान ,
उम्मीद यह रखते हैं ( कि )
बनेंगे अच्छे और महान।
            
बेटियों को देते हैं शिक्षा ,सिखलाते हैं -
तुम हो आजाद , करते हैं प्यार ,
बहुओं पर रखते हैं कड़ी नजर ,
( और ) करते हैं अत्याचार।
              
दाल-रोटी का रोना रोते,
खाते  बर्गर , चाउमिन ,
सुबह - सवेरे दौड़ लगाते ,
शाम को जाते जिम।
              
तीर्थ के नाम पर दौड़ लगाते ,
बच्चे , बूढ़े और जवान ,
धर्म नगरी बदल गई है ,
हो गई है - पिकनिक स्थान।
           
देश में बढ़ रही है - बुजुर्गों की तादाद ,
पर नहीं दिखते, कोई बुजुर्ग ,
क्योंकि रंग लिये हैं
सभी ने अपने बाल।
          
घर में भी अब नहीं सुरक्षित
वृद्ध और लाचार ,
बहुएँ उन पर कर रहीं
लात - घूँसों की बौछार।
         ---- रचयिता - मंजु सिन्हा

नोट  : - हलन्त  ( फरवरी  २०१६ के अंक ) में प्रकाशित।


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