Monday, June 8, 2015

जब हमने कहा सूरज से ( बाल-गीत )

जब हमने कहा सूरज से
ज़रा अपना रूप दिखाओ ,
वह हँस कर बोला मुझसे -
तुम मेरे पास तो आओ।

मैंने तब बोला उससे -
मैं कैसे पास में आऊँ ,
तुम इतने दूर हो रहते
मैं पैदल न चल पाऊँ।

तब हँस कर बोला सूरज -
नित पास तेरे आता  हूँ ,
मैं कई रूपों का नटवर
नित संग तेरे रहता हूँ ।

शीत ,घाम वर्षा में ,
वह मैं ही तो रहता हूँ ,
ये तीनों ही ऋतुएँ हैं ,
जिसमें विचरण करता हूँ।

जाड़े में तुम मेरी
बाँहों में समा जाते हो ,
पर गर्मी जब है आती ,
तुम घर में छिप जाते हो।

बारिस के मौसम में
बादल बन कर हूँ आता ,
घनघोर घटा गर्जन कर ,
धरती पर जल बरसाता।

मैं  भी हूँ ख़ुशी मनाता ,
तुम भी हो ख़ुशी मनाते ,
पानी में छप - छप करते ,
कागज की  नाव चलाते।


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